________________
वापानीसमो संधि सचमुष वह आशंका उत्पन्न कर रहा था। पहली ही भिड़तमें राजा महेन्द्रने सीरॉकी बौछार को । किन्तु कपिध्वज हनुमानने उसे वैसे ही जद दिया जिस प्रकार जिनन्द्र भष-संसारको खेद देते हैं ॥१-१०॥
E.] युद्ध-मुखमें जब हनुमानने इस प्रकार तोरीको नष्ट कर दिया तब राजा महेन्द्रने धकधक करता हुआ आग्नेय बाण छोड़ा तब हनुमानने भी लपटें उड़ाते बमघोष करते हुए ज्वालमालासे भीषण उस तीरको देखकर, सुरन्त अपना वारुण बाण छोड़ा। उसने आग्नेय वाणको वैसे ही ठंडा कर दिया जसे गरजता हुआ मेघ ग्रीष्म कालको ठंडा कर देता है। राजा महेन्द्रने वायु बाण जोड़ा, पवनपुत्र उससे भी नहीं डरा। तब उसने अपनी चापयष्टि डालकर और तमतमाकर, मज़बूत जड़वाला स्थिर तथा स्थूल आकारका प्रचुर पत्तोंवाला विशाल वट वृक्ष फेंका | किंतु हनुमानने उसके भी वैसे ही सौ टुकड़े कर दिये जैसे धूर्त कुषिके काव्यबंधके टुकड़े-टुकड़े कर देता है। तब राजा महेन्द्रने पहाड़ उछाला परन्तु हनुमानने उसे भी वैसे ही काट दिया जैसे सिद्ध नरकको काट देते हैं । इस प्रकार राजा जो भी लेता हनुमान उसे हो नष्ट कर देता उसी प्रकार जिस प्रकार लक्षणहीन व्यक्तिके हाथमें प्रत्येक अर्थ नष्ट हो जाता है ॥१-१०॥
[=] यह देखकर अंजनाका पिता राजा महेन्द्र अपने मनमें व्याकुल हो उठा। उसकी कोधाग्नि भड़क उठी। उसने घुमाकर गढ़ा मारी । उस लकुटिदंडके प्रहारसे हनुमान उसी प्रकार गिर पड़ा, जिस प्रकार दुर्वातसे वृक्ष गिर पड़ता है। उस गदाके प्रहारसे हनुमान जसी तरह गिर गया जिस प्रकार दुर्निवार वाके आघातसे पहाड़। हनुमानके इस प्रकार गिरनेपर आकाश