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पञ्चालीसमो संधि
डंका बजाऊँ।" यह सुनकर सन्तुष्टमन जाम्बवन्तने सन्देश देते 'हुए कहा, "राघवका मनोरथ पूरा करो, और जाकर सीताकी खोज करो" ॥१-१०।।
यह सुनकर हनुमानने राम (हलधर) का जय-जयकार किया (और कहा) "हे देव, हे देव, जाऊँगा, मह कितना-सा काम है। राघव, कोई बड़ा-सा विशेष आदेश दीजिये, जिससे रावणको यमपुरी भेज दूं और सीता तुम्हारी हथेलीपर ला दूं।" हनुमान की महगर्जना सुपर स: जीता) का हर्ष बढ़ गया। उन्होंने कहा, "भो भो हनुमान, साधु साधु, भला यह विस्मय और किसको सोहता है तो भी मुनिवरका काहा करना चाहिए। उसका (रावणका) विनाशकाल कुमार लक्ष्मण के पास है। इसलिए रावणके साथ लड़ना मेरे, तुम्हारे या सुग्रीवके लिए अनुचित है। हाँ, एक सन्देश और ले जाओ। यदि सीता जीवित हो तो उससे कह देना कि राम कहते हैं कि तुम्हारे बियोगमें बन हथिनीसे वियुक्त हाथीकी तरह क्षीण हो गये हैं। राम तुम्हारे वियोगमें उसी तरह क्षीण हो गये हैं जिस तरह चुगलखोरोंकी. बातोंसे सज्जन पुरुष, कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा, सिद्धिकी आकांक्षामें मुनि, खोटे राजास उत्तम देश, मूर्खमण्डली में कविका काव्यविशेष, मनुष्योंसे बजित सुपंथ, क्षीण हो जाता है । और भः उन्होंने अपनी पहचानके लिए अंगूठी दी है, और कहा है कि सीतादेबीका चूड़ा लेते आना ॥ १-१४ ।।'