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पडमचरित
पत्ता तं णिसुर्णेनि परिता कोण जम्बयण विषण सन्देसन । 'पूरै मणोरह राहवाहों वइदेहिह जाहि गसउ' ॥१०॥
[१५] तं णिसुणवि जयकारिंड सीरप्पहरणु ।
वेच देव जाएबङ केतिउ कारणु ।।१।। अण्णु वि बडारउ स-बिसेसट । राहव कि पि देहि आएसउ ॥२॥ जेण दसाणणु अम-उरि पावमि ! साय सुहारए करमल लावमि' ॥३॥ णिभुणेवि गलगजिउ हणुवन्तहाँ । हरिसु पनि जाणइ-कम्तहों ।।४।। 'भो भो साह साह पक्षमाइ । अण्णाहरे कासु चियम्भित छमाह ॥५॥ तो वि करेवउ मुणिवर -मासिउ । तहों खय-कालु कुमारहों पासित ॥६॥ ण वि पदण विमणवि सुग्गीवे । अधमेवउ समाणु दहगी ।।७॥ पवरि एक्कु सन्देसर जहि । जा जाय तो एम कहेजहि || बुखाइ "मुन्दरि तुज्म विमओए । झोणु करी व करिणि-विच्छोएं ।।१।। माणु खु-धम्मु व कलि-परिणामें । माणु सु-पुरिसु व पिसुणालावे ॥१०॥ झाणु मयनुघ वा-पक्ष क्सएँ । मीणु मुणिन्दुव सिद्धि का 111111 झागु दु-राउलेण वर-सु ब । अवह मन्में कह-कम्व-विसेसु च ॥१२|| भीष्णु सु-पन्धु च जण-परिचराउ । रामचन्दु सिह पई सुमरन्त" ॥१३॥
. घत्ता , अषण मि लाइ भरपलउ अहिणाणु समापहि मेरउ । भाणेजहि स भू सणड चूडामणि सीयाँ केरल ॥१॥