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पचालीसमो संधि
मैं यहाँ आया हूँ, आपके बिना सुग्रीवकी सेना उसी तरह नहीं सोहती जैसे पुंश्चलीका उछलता हुआ हृदय, आधार के बिना नहीं सोहता' और जैसे धर्म-विहीन यौवन नहीं सोहता” ॥१-११॥
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[११] तब पुल किलबाहु पवनपुत्र अपने विमान और सेना के साथ चल पड़ा। उसके चलते ही सैन्यदल भी चला। मानी पावस में सजल मेघसमूह ही उमड़ पड़ा हो, या ऋषभ भगवानका समवतरण हो, या केवलज्ञानके उत्पन्न होनेके समय देवागम हो रहा हो, या तारामण्डल उदित हुआ हो या नभ में मायामयी रचना हो । हनुमानका आनन्दघोष और कुतूहलजनक तुयं सुनकर कपिध्वजियोंकी सेना में आनन्द फैल गया, मानौ मेघके गरजनेपर मयूर सन्तुष्ट हो उठा हो । राजा सुग्रीवने आगे होकर, किष्किन्धनगरके बाजारकी कोभा करवाई। सोनेके तोरण दाँध गये, घर-घरमें मिथुन तैयार होने लगे । घर-घरमें सुन्दरियाँ रंगबिरंगे सुन्दर सुन्दर (वस्त्र) पहनने लगीं। शीघ्र ही सभी लोग सज-धजकर और हाथोंमें अर्घ्य लेकर सामने निकल आये । जाम्बवन्त, नल, नील और अंग तथा अंगदने आते हुए हनुमानका इस तरह जय-जयकार किया, मानो ज्ञान, दर्शन और चारित्रने ही सिद्धको मोक्ष में प्रविष्ट कराया हो ।। १-१२ ॥
[१२] नगर में प्रवेश करते हुए, हनुमानने घर-घर में निर्मलतार वाले मणि और सुवर्णके तोरणोंसे सजे द्वार देवे। नगर में उसने देखा कि चन्दनसे चर्चित और श्रीखंड (दही) से भरे, केशर कस्तुरी, कपूर, अगरुगन्ध, सुगंधित द्रव्य और सिंदूर से
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