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पन्नचालीसमो संधि उपेक्षा कर दी, तब विरहसे विकल होकर उस दुष्टाने अपने स्तन विदीर्ण कर लिये और रोती-विसूरती हुई खरदूषणके पास पहुँची । वे दोनों भी तत्काल कुपित होकर, चन्द्र सूर्य की तरह प्रकट हुए । वे दोनों राम और लक्ष्मणसे उसी प्रकार भिड़े जिस प्रकार हरिणांका झुण्ड सिंहसे भिड़ता है। लक्ष्मणके तीरोंसे आहत होकर वे दोनों कटे पड़की तरह गिर पड़े। इधर रणमैं अविचल रावणने छलसे सीताका हरण कर लिया । तब वहाँ से राम और लक्ष्मण विराधितके नगरको चले गये । ठीक इसी अवसरपर अंगदके पिता सुग्रीव रामसे मिले । तब रामने शीन ही कपटी सुग्रीवको भी मार डाला | फिर उन्होंने उस कोटिशिलाको उठाया कि जिसके विषयमें केवलियोंने भविष्यवाणी की थी। अतः स्पष्ट है कि हमारी जय और रावणका क्षय राम-लक्ष्मणके पास है ।।१-१६॥
[१०] जब दूतने चन्दनखाके सब गुणोंका कीर्तन किया तो हनुमान लज्जित होकर मुख नीचा करके रह गया । और जो उसने कोटिशिलाका उद्धार तथा माया सुग्रीडका मरण सुना तो वह पुलकित हो उठा । और वह नटकी तरह रसभावोंसे भरकर नाचने लगा। उसने सुर-सुन्दरियोंसे दृष्ट लक्ष्मणके कुल नामको प्रशंसा की, राम ही वह आठवें नारायण हैं जो रावणके लिए अष्टमीके चन्द्रकी तरह वक्र हैं। माया सुपीवका जिसने वध किया, उसे ही आठवाँ नारायण कहा गया है। हनुमानके मनको बात जानकर, दूतका हदय अभिनन्दनसे भर आया । माथा नवाकर, निराकुल होकर उसने कहा, "देव, सुग्रीवने आपको स्मरण किया है । यह आपके गुणरूपी जलके प्यासे बैठे हैं,. उन्हींके कहनेपर