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पडमचरित
परहरं समझियाएँ । सुषुरिसेहिं धनिया ॥६॥ विरह - दार - भिम्भलाएँ । मण वियारिया खलाएँ ॥७॥ खरो स - दूसणो वि जेस्थु । गप रुमन्ति हुक तेल्धु ॥८॥ हे वि सम्खणम्मि कुश्य । सन्द - भक्खर ख उड्य ॥६॥ भिडिय राम - लक्षणा । जिह कुरा धारणा ॥१०॥ विपहुणा सहि भिण्ण । पडिय पायव च हिरण 11१॥ एसह वि रौँ थिरेण । णीय सोय . इससिरेण ॥१२॥ हरि वला वि वे वि सासु । गय पुरं विराहियासु 11३॥ एत्यु अवसरम्मि राउ । मिलिउ सायरस ताउ ॥१.४|| विर - भडो वि राहवेण । विणिहभो अलाइवेण ॥१५||
पत्ता तंकि कोरि-सिलुशरणु केवलिहि भासि जं भासिउ । अम्हहुँ जब रावणही खर फुड लक्षण-रामहुँ पासिउ ॥३६।।
[१०] कहिट सम्वु जं चन्दणहिहें गुण-कित्तणु ।
अनिल-पुत्तु लनाविउ घिउ हाणणु ॥१॥ जं पिमुणिउ कोडि - सिलुद्धरण ! अग्णु वि विसुग्गीवहीं मरणु ॥२॥ सं पक्षण - पुतु रोमजियउ । मडु जिह रस-भाव-पणचियउ ।।३।। कुलु मामु पसंसिड लक्षणहाँ । सुर-सुन्दरि - पायण-कडकखणहाँ ॥था 'सबउ णारायशु भहमउ । दहवयणही बन्दु व अहमउ ||५|| भायासुग्गाउ जेण वहिउ । हलहरु अट्टमउ सो वि कहिउ' ।।६।। मणु जाणवि हणुबन्तहों तणउ । अहाँ हियव वद्धावणउ ॥७॥ सिरु ण धि णिरारिउपिउ सबइ । सुगीठ देव पइँ सम्भरइ ॥८॥ अच्छह गुण-सलिल-तिसाइपड । ते हउँ हकारउ आइयउ ॥६॥