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पत्रचालीसम्मो संधि रहटयन्त्रमें लगी हुई नई घड़ियाँ आती जाती रहती हैं। तुम अकारण क्यों रोती हो। हे माँ अपनेको धीरज दो, हमारा तुम्हारा और दूसरोंका भी किसी-न-किसी दिन प्रयाण अवश्य होगा ||१-१०॥
[८] परिवारने भी खरकी पुनीन्हो धीरज गाया और लोकाचारके अनुसार, मृतजल भी उससे दिलवाया। इस तरहके कलकल ध्वनि बढ़नेपर शत्रुसंहारक, पवनका पुत्र हनुमान उठा, लम्बी बाहुओंसे पुष्ट ?, गजकी तरह निरङ्कुश, राजाके ऊपर सिंह की तरह ऋद्ध, फड़कते हुए नेत्रोंवाला, वह देखनेमें शनिकी तरह था । सूर्यकी तरह दुनिर्वार, यमकी तरह निष्ठुरदृष्टि, भाग्यकी तरह कुछ उठा हुआ, अष्टमीके चन्द्रकी तरह वक्र, जन्ममें बृहस्पति की तरह, कूरकर्ममै अहिकी तरह था वह । उसने घोषणा की, "मुझ हनुमानके क्रुद्ध होनेपर राम और लक्ष्मणका जीवन कैसे ( सम्भव है ) चौथे ही रोज मैं उन्हें खरदूषण मामा ( ससुर ) के पथपर भेज दूंगा ?" ||१-१०॥
[६] तब लदीभुक्ति दूतने अत्यन्त, श्रुतिमधुर वाणीमें कहा, “यह सब शम्युकुमारकी माँने किया है। हे देव, अनंगकुसुमकी माँ, विद्याधरी चन्द्रनखा, एक दिन उपवनमें पहुंची। रावणकी बहन उसका मन, वहाँ अपने पुत्र वियोगके दुखको भुलाकर, कुमार लक्ष्मणपर रीझ गया ! अपना दिव्यरूप दिखाते हुए उसने कहा, "मेरी रक्षा करो" परन्तु उन महापुरुषोंने उसकी