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पउमचरिड
घसा रोहि काई अकारण धीरवहि माएँ अप्पाणउ । अम्हाँ तुम्हहुँ अवाहु मि कहिबसु धि अवस-पयाणउ' ॥१०॥
[] खरही धीय परिधारविया परिवारण ।
मय-जलं च देवाविय लोयाचारणे ॥३॥ इहेरिसम्मि बेलए । परिहिए वमालए ॥२॥ समुट्टिोऽरिमणो । समीरणस्स गन्दणो ॥३॥ पलम्व-बाहु · पारी । निरङ्कुसो इन्द्र कुमरो॥४॥ महीहरस्म उपपरी । विरब व केसरी ।।५।। फुरम्त-रस . लोयणो । सणि ग्ध सावलीयणों ।।६।। दुवारसो व भक्खरो । जमो व विहि-णिट्ठुरो ।।७।। विहि म्व किञ्चिदुहिनो । ससि व अट्टमो ठिओ ॥८।। विहाफर म्व जम्मणे ! अहि स्व फर-कामणे ।।६।।
पत्ता 'मई हणुबन्ते कुएँण कहिं जीवित लावण-रामहुँ । दिवसें चउत्थएँ पहचमि पधैं खर-दूसण-मामहुँ' ॥१०॥
लच्छिभुत्ति पणिउ सुहि - सुमहुर - वायए ।
'एउ सन्धु किउ सम्बुकुमारहों मायए ॥१॥ देव गयण • गोयराएँ । कामकुसुम - मायरी ॥२॥ उबवणं पटुक्यिाएँ । सुअ - विशेष - मुकियाएँ ॥३॥ रावणस्य लहु . मसाएँ । काम · सर - परब्धसाएँ ॥४॥ लक्षणम्मि गय - मणाएँ । दिन : स्व . दात्रणाएँ ॥५॥