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पउमचरिउ
एकहे . पं बञ्चासणि पक्षिय । अषणेकह रोमावति चडिय ॥३॥ एक्का मणे णाई पलेवण: । अण्णेक्कहें पुणु घडावणउ || एक्क. समीर णिरचेण । भण्णेकहें अवगय - धेयप्पउ ।।५।। एकह हियबर पलु पल्लु लहसिट ! अण्णेवकहें पलु पल ओससिउ ।।६।। एक्को ओडुशिड मुह-कमल । अम्गेषकार बियलिउ अहर-दल ॥७॥ एक्कहें जल-मरियई लोगण' 1 अण्णेक्कह रहस - पलोयण ॥८ एक्क सरु घर-गेयहाँ तगड । अण्णेस्कह कलुणु रुवारणउ ||811 एक्कहें घिउ रायलु विमण-मणु । अण्णेकको वाइ पाई छणु ॥१०॥
घत्ता अड अंसु • जलोहिया अउ सरइसु रोमधिग्रड । राउल पदण-सुयहाँ तपन शं हरिस-विसाय-पणधियउ 100
[.] ग्वरहों धीय मुशाय पुणु वि पाविया ।
चन्दरोण पब्वालिय पञ्चुर्जाविया ॥१॥ अद्विय रोवन्ति अणकुसुम । णं चरण-लय उभिण्ण-कुसुम ॥२॥ 'हा साय केण विणिवाइओ सि । विजाहरु होन्तउ घाइभो सि ॥३॥ सूराण सूर जस-णिक्कर । विज्ञाहर - कुल-णहयल - मया ॥५॥ हा भाइ सहोदर देहि वाय ! विलयन्ति कासु पई मुक्क माय' ॥५॥ तं णिसुर्णेवि कुसलहि पथिएहि । सहस्य - सस्थ - परिचाएहि ॥६॥ 'किं ण सुउ जिणागमु जगें पगासु । जायहाँ जाबही सम्वहाँ विणासु ॥७॥ अल-विन्दु ओम घहले पडस्तु । जं दीसह साहसु महन्तु ॥ साहारु ण बन्धह एइ जाइ । भरत-अम्त णव परिय णाई ॥३॥