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पश्चालीममो गमि एक भी बलवान नहीं दिखाई देता । हाँ जयलक्ष्मी के साथ विजय उसीकी होगी जिसके पक्ष में हनुमान होगा" ।।१-१०॥
[३] यह सुनकर किष्किन्धराज सुग्रीव प्रसन्न हो गया। उसने लक्ष्मीभुक्ति दूत को हनुमान के पास भेजा (यह कहते हुए) कि "तुम्हारे समान दूसरा कौन बुद्धिमान है। ऐसा कोई उपाय करो जिससे वह (पक्ष में) मिल जाए । जाकर, गुणों और वचनोंके साथ हनुमानसे कहो कि इस समय रूठना ठीक नहीं । प्रसिद्धि से रहित खर दूषण और शम्बू कुमार अपने खोटे आचरणों से मृत्यु को प्राप्त हुए । इसमें न रामका और न लक्ष्मणका दोष है। जिस प्रकार उन्हें रोष हुआ, उस प्रकार सबको रोष होता है। वाहना कि इस समय तक क्या तुमने चन्द्रनखा के आचरणों को नहीं सुना ? लक्ष्मण से अपमानित होकर, विरह से पीड़ित उस दुष्टा ने खर-दूषण को मरवा डाला।" ये वचन सुनकर दुत आनन्दित हुआ। वह तुरन्त विमान में बैठ गया। पुलकसे खिला हुआ शरीर बाला वह दूत आधे पलमें लक्ष्मीनगर पहुंच गया। हनुमान का नगर, हनुरुह द्वीप में सबसे सुन्दर था। वह ऐसा लगता था जैसे किसी कारण स्वर्ग ही धरती पर आ पड़ा हो।
[४] लक्ष्मीभुक्ति उस लक्ष्मीनगर में प्रवेश करता है, और घूमते हुए जो-जो सुन्दर है उसे देखता है। - पहला देवकुलवाट पर्ण था, दूसरा पूगफल मूल चैत्यकुल, जातिपुष्प करहाटक, चूर्णक चित्रकुटक, सुन्दर कंचुक, रामपुर, गुल सर प्रतिष्ठान, अत्यंत विशाल भुजंग बहुयान, अर्द्ध वेश्म प्रिय अर्बुद, केरक जोब्बण कर्णाटक सविकार, हरिफेल वस्त्र, सुंदर कांतिवाला, विशाल विख्यात लवण, वैदूर्यमणि, सिंहलका बज्रमणि, मोतियों के हारसमूह नेपालको कस्तुरीगंध, खर वज्जर,