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पप्रचालीसमो संधि बन्दना-भक्ति करके किष्किन्धा नगरी आधे पलमें हो चला आया। राम और लक्ष्मण यद्यपिइतने साहसका प्रदर्शन कर चुके थे फिर भी सुपोषके मनमें सन्देह बना रहा। उसने कहा, "अहो जाम्बवन्त बताओ महान चरित्र किसका हे, रावणका या लक्ष्मणका, एकने प्रचण्ड कैलाश पर्वत उठाया तो दूसरेने कोटिशिलाको उठा लिया । बताओ दोनोंमें साहसी कौन है ? कौन शुभ गतिवाला है,
और कौन संसाग्गाी है ?" तब जाम्बवन्तने कहा, "भनमें मूर्ख मत बनो, ऋया प्रभु तुम्हें आज भी सन्देह है। सबकी अपेक्षा परमागम (जिनागम ) बड़ेसे भी बड़ा है । हे राजन् , क्या सैकड़ा जन्मोंमें भी मुनिवर्गका कहा झूठ हो सकता है"।।५-६।।
[२] यह मुनकर हर्षित शरीर सुग्रीवके मनकी भ्रान्ति दूर हो गई । वैसे ही जैसे जिन वचनको सुननसे मिथ्याष्टिकी भ्रान्ति मिट जाती है । आगमके बलपर इस प्रकार ज्ञान प्राप्त हो जाने पर सुग्रीव ने अपनी सेनाका अवलोकन करते हुए पूछा, "क्या आप लोगोंके बीचमें ऐसा कोई वीर है, जो इस गुरु भारको अपने कन्धेपर उठा सकता हो, मेरा मुख उज्ज्वल कर सकता हो. नामको उसका स्त्रीरत्न दिखा सकता हो, जो इस दुख महानदीसे तार सकता हो, और जाकर सीता देवीको खोज सकता हो"। यह मुनकर जाम्बवन्त बोला, "हे देव, हनुमानको छोड़कर और कौन जा सकता है। यह मैं नहीं जानता कि वह भी आजकल हमसे रुष्ट क्यों हैं, शायद खरदृषण और शम्बूक मार जो दिये गये हैं। इस बोपको लेकर क्षीणमध्य हनुमान केवल रावणसे ही मिलेगा। जो जानते हो तो उसे लानेका उपाय सोचो। क्योंकि हनुमानके मिलनसे अशेप जग मिल जायगा। राम और रावणकी सेनामें