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पउमचरित
पत्ता जा सयल-काल-हिण्डन्तहुँ हुअ वण-वास परम्मुहिम । सा एहि लक्षण-रामहुँ थिय सिय सवाम्मुहिय ॥६॥
लोयग्गहों सिक-सासय-सोखहो । जहि मुणिबरहुँ कोटि गय मोक्वहीं ॥१॥ सा कोजि-सिल सेहि परिमश्रिय । गन्ध - धूप-वलि-पुमहि अघिय ॥२॥ दिमम स-सझपवह किउ कलयलु । घोसिड सज-पथारु जिण-मनछु ॥३॥ 'जसु दुन्दुहि असोउ भामलु । सो अरहन्तु देउ सउ मालु ॥४॥ से गय तिहुअणग्गु तं णिकालु । ते सिद्धवर देन्तु सउ मालु ॥५॥ जेहि अगभग्गु जिउ कलि-मलु । ते वर-साहु देन्तु तउ मालु II जो छज्जाच-णिकायहँ वच्छलु । सो दय-धम्मु देउ तर माल' || गुम सु-माल उच्चारेपिणु । सिद्धचरहुँ णवकार करेपिणु 111 जय-जय-स? सिल संचालिय । रावण-रिद्धि णाई उहालिय ॥६॥ मुक्क पडवी करयल-ताडिय ! दहमुह-हियय-गण्ठि णं फाटिय ।।१०।।
. पत्ता परिसु. सुरवर लोण अय - सिरि-मायण-कहक्खणहों। पम्मुक स ई भु व-दप हि कुसुम-वासु सिर लक्षणहाँ ॥१॥
[४५. पञ्चचालीसमो सन्धि ] कोडि-सिलए संचालियएँ दहमुह-जीविड संचालि (4)। पाहे देवहि महियल गरेंहि आणन्द-तूर अफालि (4) ॥
रह - बिमाण • माया - सुरङ्गम- वाहणे । विजड घुटु सुम्गीवहाँ केर' साहले ||१॥