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उचालीसमा सोध [१४] तत्र इन बचनोंको सुनकर जाम्बवन्तने सुग्रीवसे निवेदन किया कि शत्रुपक्षके संहारकर्ता इसे आप मामूली आदमी न ममझे। यह जो कहते हैं कर दिखाते हैं । जिसने सूर्यहास खड्ग ग्रहण किया और जिसने शम्बूक कुमार के प्राण लिये, जिसने खर-दूषणके कुलका नाश कर दिया, युद्ध में प्रहार करते हुए उसे कौन पकड़ सकता है ? रावण के लिए मानो वह क्षयकाल ही अवतरित हुआ है। परमागम आज प्रमाणित हो गया है । केवलशानियोंने बहुत पहले यह आदेश कर दिया था कि जो कोटिशिला का संचालन बैसे ही कर लेगा जैसे कि कोई अपनी स्त्री को बांहों में भरकर आलिंगन कर लेता है, वही रावणका प्रतिद्वन्द्वी और विद्याधरोंकी सेना का स्वामी होगा। जाम्बवंत के इन वचनोंको सुनकर कुमार लक्ष्मणने अपना भुजकमल ठोककर कहा, "अरे एक पाषाणखण्ड से क्या, कहो तो सागर सहित धरती ही उठा लूं"॥१-६॥
१५] यह वचन सुनकर, सन्तुष्ट होकर बालिके छोटे भाई सुग्रीवने लक्ष्मण से कहा, "हे देव ! तुम जो कहते हो यदि वह सच है, तो इस बातको और सच करके दिखा दो तो मैं हृदय से तुम्हारा अनुचर हो जाऊंगा, वैसे ही जैसे सूर्यका दिन या समय अनुचर है।" यह सुनकर युद्ध में दुःशोल नल और नीलने सुग्रीव को समझाया कि जिसने बाणोंसे खरदूषणको आहत कर दिया है, विश्वास करो, वह कोटिशिला भी उठा देगा। यह कहकर विद्याधर चल पड़े। मानो नव पावस में मेघही चल पड़े हों। घंटाध्वनि और झंकारसे प्रमुख यानों पर राम-लक्ष्णको बैठाकर वे कोटिशिलाके प्रदेशमें पहुंचे वैसे ही जैसे सिद्धि सिद्धि का ध्यान करते हुए वहाँ पहुँचते हैं। वह शिला उन्हें ऐसी लगी मानो