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पउमरिड
E१४]
तं वयष्णु सुण चि वयणुगएण । सुग्गाउ वृत्त जवष्णएण 11 'ऐहु होहण का विसावण णरु । सञ्चउ पहिवरख विणासयर ॥२॥ * चवह सम्वु तं णिबहइ । को असिवर सूरहासु लहइ ॥३॥ जो जीविउ सम्बाहाँ हरह । जो स्वर-दूसण-कुल-स्वउ करई ॥४॥ सो र पहरन्तु केण धरिङ । खय-कालु इसासह) अश्यरिउ ॥५॥ परमागमु णीसम्बेहु थिउ । केवलिहिँ भासि आपसु किं ॥६॥ आलिवि वाहहि जिह महिल । जो संघालेसइ कोडि-सिल ॥ सो होसइ मनु साणणहो । सामिल विजाहर - साहणहों' ॥८॥
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घत्ता
जम्ववहाँ अयशु णिसुणेप्पिणु धुणित कुमार भुभ-जुअलु । 'कि एवं पाहण-खण धमि स-सायरू धरणि-पलु' ॥६॥
[१५] तं णिसुणेषि वयणु परितुष्? । वुस जणणु वालि-कणि? ॥१॥ 'जं जं चहि देव सं सबळ । अण्णु वि एक करहि जइ पचड ॥२॥ सो हउँ निछु होमि हियाइरिङ्गाउ । सूरहों दिवसु व वेल परिसिउ' ॥३॥ संणिसुणेवि समर - दुस्सीहिं । णरवह शुश्माविउ मल-गीले हि ॥॥ 'जेण सरहिं खर-दूसण घाइय । पत्तिम कोकि-सिल वि उसाइय' ॥५॥ एम चवेवि चलिय विजाइर । य - काकाले गाई णब जलहर ॥६॥ लक्रमम-राम प्रधाविय जाणहि । घण्टा - अणि • झकार-पहाणे हि ॥७॥ कोरि-सिला - उसु पराइप । सिद्धं हि सिद्धि जेम णिमाइय ॥८॥