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श्म
पउमचरिउ
पूसमाणु जड् लीय पासिउ । सो करें वयणु महारउ भासि ॥३॥ चरि करि तिहुण-संतावणु । जइ वि णे एकेकी रावणु ||४|| सो वि जति स तेरह वरिसइँ । जाई सुरिन्द-भोग अनुसरिसहूँ ॥५॥ उप्परन्स पुणु काह मि होस । तं जिसुणेषि चयणु बलु घोसइ ॥ ६ ॥ 'मइ मारेव चरि सहाथ लाएवउ खरबूसम पन्थें ॥७॥ सिय-परिहनु सम्बह मि गरूवउ ! णं तो पहू मिस जि अणुहूअर ॥८॥
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धत्ता
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जो महलिउ विहि-परिणामण अयस कलङ्क-प-महिं ! सो जस प पक्खालेवउ रहनुह सीस-सिलायले हिं' ॥६॥
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तं णिसुमेषि वसु
एकु कुरकु पशु एक समुह ए
सुम्मीदें । 'विग्गहुं कवणु समउ दहगीवें ॥१॥ अइरावड पाहणु एवं एकु कुल-पावउ | कमलायर । एक सुसु एकु खगेसरु ॥३॥ एक मणुसु एक वि विजाहरु ] तहाँ तुम्ह हुँ वडारड अन्तरु ॥४॥
जग जस पडु जेण अफालिङ । गिरि जेण महाहवें भम्पु पुरन्दरु | जमु प्रेम समीरणो वि जिउ खन्ते । कवणु इरि घथणेण तेण आउ । णाइँ
कलासु करेंहिं संचालित ॥५॥ वसवणु वरुणु वहसावरु ॥ ६ ॥ गहणु नहीं माणुस मेसें' ॥७॥ समिर विस हुद्व ॥८॥
धत्ता
'भङ्गङ्गय • णल- सुग्गी वहीं वाहु सहेजा होहु छुड । हउँ खक्खणु एक पहुचमि जो दहगीवों जीव- खुडु ॥३॥