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पउयालीसमो संधि दिया। जो लोग सीता को खोजने के लिए गये थे वे भी इसी अवसर पर लौटकर आ गये। तब राम ने उनसे पूछा, "अरे वरवीर प्रचंड नल-नील और गवय-गवाक्ष, बताओ वह लकानगरी यहाँ से कितनी दूर है ?" इस पर जाम्बवंतने रामको यह उत्तर दिया कि "लवण समुद्रके धेरे में राक्षसद्वीप है जो सात सौ इक्कीस योजनका है। यह बात जिनेन्द्र ने केवलज्ञान से बताई है। उस लंका द्वीप में विकट नाम का पर्वत है जो नी योजन ऊँचा और पचास योजन विस्तृत है। उस पर बत्तीस योजनकी संकानगरी है। रावण उसका एक मात्र नि:शंक राजा है । वह दूसरे समुदों से घिरी हुई है । एक तो सिंह देखने में वैसे ही भयंकर होता है दूसरे वह कवच पहने हो।। १-१२ ।।
[११] जिस रावणसे तीनों लोक आशंकित रहते हैं उससे कौन लड़ सकता है । अत: हे राघव, इस आलापसे क्या और सीता देवीके प्रति प्रलापसे क्या। मेरी पीन स्तनोंवाली और रूप में अत्यन्त सुन्दर तेरह कन्याएं स्वीकार कर लें। इनके नाम हैंगुणवती, हृदयवर्म, हृदयावलि, स्वरवती, पद्मावती, रत्नावली, चन्द्रकान्ता, श्रीकान्ता, अनुरा, चारुलक्ष्मी, मनवाहिनी और सुन्दरी । जिनवर की साक्षी लेकर आप इनसे विवाह कर लें।" यह सुनकर राम ने कहा कि इनमें से मुझे एक भी नहीं रुचती। यदि रम्भा या तिलोत्तमा भी हो तो भी सीता की तुलना में मेरे लिए कुछ नहीं। रामके इन वचनों को सुनकर किष्किन्धानरेश सुग्रीव ने हँसते हुए निवेदन किया, "अरे तुम तो उस अनुरक्त (प्रेमी) की कहानी कह रहे हों जो भोजन छोड़कर छाँछ पसन्द करता है ।। १-६॥
[१२] तुम जो चार-बार अज्ञानीकी तरह बोल रहे हो, तो क्या तुमने यह लोक-आख्यान नहीं सुना कि जो बात एक