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[४४. चउयालीसमो संधि] मणु जरइ आस प पूरइ खणु वि सहारणु णड करह । सो लक्खणु रामाएसें घर सुग्गीयहाँ पइसरइ ॥
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विष्टसुग्गाचें समरे सर-भिण्ण' । गएँ सत्तमएँ दिवस बोलींपएँ ॥६॥ त्रुत्तु सुमिसि - पुत्तु वलए । 'भणु सुग्गाड गम्पि विणु मेवें ॥२॥ तं दिटन्नु पिरुत्तउ जायउ । सम्बाहों सीयलु कनु परायउ ॥३॥ जं मुआविर रज्जु स - तारउ । कालहाँ फेबिउ वहरि नुहार ॥४॥ तं उवयाह किं पि लइ जाणहि । कन्तहें तणिय वत्त तो आणहि ॥५॥ गड़ सोमित्ति विसजिन रामें । सरु पञ्चमड मुकु णं का ॥३॥ गिरि-किनिन्ध-गयर मोहन्सर । कामिणि - जण-मण- संखोहन्तउ ॥७॥ जिह जिइ घरु सुग्गीवह पावह । तिह तिह जणु विहइफ धावत् ॥८॥ ज गणइ कण्ठउ कराउ गलिण्ड । णाई कुमार मोइणु विष्णउ ॥६॥
पत्ता किक्विन्ध-णराहिव-केरउ दिट्ट पुरउ पदिहार किह | थिउ मोक्स-वार पडिकूलर जीवहाँ दुप्परिणामु जिह ॥१०॥