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पउमचरिख पहरम्ति धरित विष्फुरिय-चयण । रसुम्पल-दल - सारिन्छ - णयण ॥३॥ पुस्थन्तरें रावण-किकरण । मेरिलय मयरहरी विग्ज तेण ॥४॥ धाइय गन्ति पगुलगुलन्ति । वेला कसलोलुस्लोल देन्ति ॥५।। एसह घि गलेग विरुद्धएण । समाज जयसिरि-लुपुण ॥६॥ आयामवि महिहर-विग्ज मुक । अलु सबलु घि पडिपरन्ति हुा ।।। तं मामा-सायरु दरमलेवि । विउजाहर-करणे उसललेवि मा
धत्ता पालु उपरि डीणु समुहहाँ पालु वि सेउ सिर-कमलें। विहिं वेनिस मि मण्ड घरेप्पिा घनिय रामही पय-जुमलें ॥१॥
[३] सेड-समुह मे वि सं भाणिय । णल-गोल हि समाणु सम्माणिय ॥१॥ तेहि मि पवर पसाइवि कभणड । तहाँ छक्खणहाँ स-हत्य दिउ ॥२॥ सबसिरी कमलरिछ विसाला । अण्ण वि रयणसूल गुणमाला ।।३।। पत्र बिकाउ देवि कुमारहों। थिय पादक सीय-भत्तारहीं ॥४॥ एक रयषि गय का वि विहाणउ । मुशु भरुणुभगमें दिण्णु एमाण ॥५५॥ साहणु पसु सुवेलु महीहरु । सहि मि सुबेलु मवर विजाहरु ।।६।। धाइड जिह गहन्दु ओरालंधि । भोसणु करें धणुहरु अप्फावि ॥७॥ भिजन भिड रणने जाहि । सेउ-समुहाहि पारिउ ताहि ॥
घचा एएँ हि समाणु झुम्भन्त बह पर-जणषएँ जम्पणउ । पड पाएँ हि राहव चन्दहाँ मं मारायहि अप्पणउ ॥३॥
[1] बलएवहाँ पमिउ सा सुवेल्लु । णं परम-शिणहाँ सेमंस-धवलु ॥१॥ णिसि एकक बसवि संचालु सेक्षु । पाप-वणु शुनगाय-अण्णु ॥२॥