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छपण्णासमो संधि
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प्रवेश कर सकता है। प्रलयके आनेपर कौन बच सकता है। शेषनागके फनसे मणि कौन तोड़ सकता है । लंकाके सम्मुख कौन पग बढ़ा सकता है।" अमर्षसे भरकर सब लोगोंको सम्बोधित करते हुए उन्होंने और भी कहा-"अरे किष्किधा-नरेश, अरे सुषेण, अरे कुमुद, कुन्द, मेघनाद, नल, नील, विराधित, पवनजात, दधिमुख, महेन्द्र, माहेन्द्रराज, सुनो, और भी जो-जो नरपति हैं ये भी सुनें । यदि सम्भव हो तो शत्रुजनोंसे नम्र होकर आप लौट जाय । सेतु और समुद्र के रहते हुए आपका लंकाके प्रति प्रस्थान कैसा?" ||१६||
[११] इसी अन्तरमें जयश्रीके लिए शीघ्रता करनेवाले रामने सुग्रीवसे पूछा-"ये जो राक्षस हथियार लिये हुए दिखाई दे रहे हैं, वे किसके अनुचर हैं ?" यह सुनकर नतमस्तक सुग्रीवन स्तुति-वचन पूर्वक रामसे कहा--"आदरणीय, ये सेतु और समुद्र विद्याधर हैं, ये यहां रावणका नाम लेकर, सेवावृत्ति में नियुक्त हैं। युद्ध में इनका प्रतिद्वंद्वी कोई नहीं है। केवल नल और नील इनके प्रति युद्ध कर सकते हैं।" यह सुनकर रामका हृदय खिन्न हो गया। उन्होंने तत्काल उन दोनोंको आदेश दिया। वे भी रामको नमस्कार करके, पुलकके कारण ऊंचे कंचुकोंसे विशिष्ट होकर लड़ने लगे। नल समुद्र के सम्मुख दौड़ा और नील सेतुसे जा भिड़ा, बसे ही जैसे गजराज गजराजसं गरज कर भिड़ते हैं ।।१-६।।
[१२] रणमें भयंकर वे आपस में भिड़ गये, दोनों विद्याधर और दोनों नल तथा समुद्र । विज्ञानकरण कररुह तथा और भी दूसरे समस्त आयुधोंसे वे प्रहार करने लगे। दोनोंके चेहरे