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पवमचरि
सम्बाधर पवित णारि । दहि-कुम्भ- विहस्थी वर- कुमारि ॥५॥ णिधूमु जलणु अणुकूल वाउ । पियमेलाबउ कुलगुरु काउ ॥६॥ सुणिमिस गिऍटि जसुष्णपुण । बलपु वृत्त 'घणोऽसि देव त सहस्र गमणु । आय सु-निमित्त
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साहणेण । संघि
रहवरेण । इसेण
तुसामु जरु नरेण । चलगेण
संच शहब चिन्भेण बिन्धु रहू
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धत्ता
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सेपिणुबुवा रामेण सह सु-निमि
अन्साई ।
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जग- लग्गुण-खम्भु भारउ जिणवरु हियएँ बहन्ताहुँ ॥ ६ ॥
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सुरपूण
बलु रण रहसडिड गर्हेण माह । संचलि
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थोवन्तरे दिडु महा समुद्दु । सुंसुअर भयर - जलयर - रउछु || मच्छोहर पक गाइ घोरु | कल्लोळावन्तु तरक
थोरु ॥६॥
वेला
वडन्तु पवहणस्तु | फेणुजल तोय तहाँ उबारे पयउ रामसेज्णु । पां मेह-जालु
सुसार देन्तु ॥ ७ ॥ हयले निलम्णु ॥८॥
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जम्बुष्णपूर्ण ॥७॥ लहइ कवणु ॥८॥
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चादणु
छत उ चलणु करयतु करेण ॥ ३ ॥
देवगणु णा ॥४
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वाइज ॥ १॥ गयवरेण ॥२॥
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घसा
विभाणारू हि लङ्गिड हषण समुषु किए ।
सिद्ध हिं सिद्धाउ जस हि चउगड़-भव-संसारु जिह ॥ ६॥
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योवन्तर नहीं सायरों मज्झें । बेलम्बर-पुरें तियसह असज् ||१
दारुणु जुज्नु देवि ||२||
विवाहर सेउ समुह वे वि । थिय भग्गएँ 'मरु तुम्ह कुइड कयन्तु अञ्जु । को सकइ को पहह भीसणे जळण जालें । को जीव
सकड़ों इविर || ३ || तुएँ पलय का
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