________________
छप्पण्णासो संधि
RA
“अरे अभी से संग्रामके बिना ही गरजने से क्या, यह सब उसी समय जाना जायगा, जब स्वामिश्र ेष्ठ राम शत्रु सेनाको विघटित करेंगे ।" एक और वीर यह सोचकर अपने मन में खिन्न हो गया, कि मैंने स्वामीके लिए अवसर क्यों दिया । एक और सुभट, रामके आगे खड़ा होकर गरज उठा, "जब मेरा सिर युद्धमें उड़ जायगा, तभी प्रभुका अवसर पूरा होगा" || १-६॥
[७] एक और सुभटके पास विद्याधरों द्वारा साधित विद्याएँ थीं । पण्णत्ती, बहुरूपिणी, वैताळी, आकाशतलगामिनी, स्तम्भिनी, आकर्षण, मोहिनी, सामुद्री, रुद्री, केशधी, भोगेन्द्री, खन्दी, वासवी, ब्रह्माणी, रौग्वदारिणी, नैर्ऋति, वायवी, वारुणी, चन्द्री, सूरी, वैश्वानरी, मातंगी, मृगेन्द्री, वानरी, हरिणी, वाराही, तुरंगमी, बलशोषणी, गारूड़ी, पञ्चई ??, कामरूपिणी, बहुरूपकारिणी और आशाली विद्या । इस प्रकार राम और सुग्रीवको सेना सम्रद्ध हो गई। मानो जम्बूद्वीप ही लंकाद्वीपका अतिथि होना चाह रहा था ॥१-६॥
[] अपने कुलमें उत्पन्न होनेवाले रामके चलते ही, शुभ शकुन दिखाई दिये । जैसे गन्धोदक, चन्दन, सिद्ध, शेष ( . नाग ), जिनपूजा करके व्याध ? और उत्तम वैशवाला दर्पण, शंख, सुन्दर कमल, नम्न साधु, सफेद छत्र, सफेद गज, सफेद भ्रमर, सफेद अश्व और सफेद चमर सब अलंकारोंको पहने