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परमपरिर
पत्ता मावि सम्णमासट उप्परि अप-सिरि-माणहो। रूक्लिइ लसणु कार णं खव-कालु दसाणणहाँ In
भागेरक सुहण सण्णव के वि । णिय करतह मालिङ्गणड देवि ॥१ अण्मेकहो पण तम्बोलु देह । मष्णेषकु समप्पियउ विप लेई ।।२।। 'मई कन्त समाणेम्बड बलेहि । गय-पणे हिं रहवर-पोष्फलेहि ॥३॥ गरवर - संचूरिय - चुम्णएण । रिउ-जय-सिरि-बहुअए विष्णएम' ॥३॥ भष्पोकहीं जाएँ स-सन्त देह । बोहराई फुलह जरु , लेई ।।५।। "ण समिच्छमि हउँ हु लैहि भनें ! एसिड सिरु णिवइमाम कम्जे ॥५॥ भण्णेकहाँ धण भूसपउ देह । अण्णेषतं पि सिण-समु गोह ॥७॥ 'कि गन्धे किं चन्दण रसेण । मई अगु पसाहेबड उसे ॥८॥
धत्ता अण्णेकहाँ वण अध्याहइ 'हिम-ससि-सासमुज्जला । करि कुम्भई गाइ दलेप्पिणु भाणेजहि मुत्ताफलई ll
[५] अन्यक्केसह वि सुहारा । सनियर विमाणह सुन्दराई ॥१॥ घन्टा - कार - मणोहराई । हटन्त - मस - महुभर-सराई ॥२॥ ससि - सूरकन्त- कर• णिब्भराई । बहु- इन्दील- किय- सेहराई ॥३॥ पवलय - माला - रजोतिराई । मरगय- रिझोक्ति- पसोहिराई ॥॥ मणि - पउमराय - वष्णुजलाई । वडुम - बज - पह- हिम्मलाई ।।५।। मुसाहल - माला - धवलियाई । किरिणि-धम्पर-सर- मुइलियाई ni धूवत - धवल - धुभ - धयबहराई । बसन्त - सा- सय- साहाई ॥