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पप्पण्यासमो संधि
२३॥ : हण्डोंने जनम का ओख राजने लगे और लाखौं तूर्य हाथोंसे आस्फालित हो उठे। उनमें मङ्गल तू के नाम थे-जय, नन्दन, नन्दिघोष,सुघोष,शुभ, सुन्दर, सोहन, देवघोष, वरज, वरिष्ठ, गम्भीर, प्रधान, जनानन्द, श्रीवर्धमान, शिव,शान्ति, अर्थ, ?? सुकल्याण, महामङ्गलार्थ, नरेन्द्राभिषेक, प्रसन्नध्वनि, दुन्दुभि नन्दीघोष, पवित्र, प्रशस्त, भद्र-सुभद्र, विवाह प्रिय, पार्थिव नागरीक प्रयाणोत्तम, वर्धन और पुण्डरीक । इनके सिवा और भी सरह-तरहके तूर्य थे। डउँ-डउँ-डउँ, डमरु शब्द, तरडक-तरडक नाद, घुम्मुक धुम्मुक ताल, रु-म- कल-कल, किससकिस मनोहर स्वर, दुणिकटि, दुणिकिदि, वाद्य और गेग्गदुगेग्गदु-घात इत्यादि अनेक भेद संघातोंसे युक्त तूयं बज उठे। उन तूर्योके शब्दको सुनकर राघषकी सेना वैसे ही इकट्ठी होने लगी, जैसे नदियोंके स्रोत आकर समुद्र में मिलते हैं ॥१-१२॥
[२] कपिध्वज नरेश सुग्रीव तैयार होने लगा। अगदके साथ अङ्ग भी सनद्ध हो गया। विशेष हर्षसे रावणके नन्दन वनको उजाड़नेवाला हनुमान भी तैयारी करने लगा, गवय और गवाक्ष सन्नद्ध होने लगे, जाम्बवंत और दुदर्शनीय दधिमुख भी तैयार होने लगे । विराधित और सिंहनाद भी तैयार होने लगे। कुमुद सहाय कुंद तैयार होने लगे, परिमिता नल और नील तैयार होने लगे। सिंह रथ और रलकेशि तैयार होने लगे । बालि पुत्र भी तैयार होने लगा। अपने पुत्रके साथ राजा महेंद्र तैयार होने लगा। लक्ष्मीभुक्ति और पृथुमति भी तैयार होने लगे, और भी चन्द्रप्रभ, चन्दमरांची आदि तैयार होने लगे। इस तरह रामकी अशेष सेना समद्ध हो उठी। एक ओर तैयार