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पउमचरिट
[.] हयाणन्द-भेरी दही दिण्ण लढा । कर फालियाणेय-तूराण लक्खा | अर्य गन्दणं णन्दिधोसं सुलो र सुन्दरं मोहर्ण देवघोस ।।२।। चरम परिह गहीरं पहार्म । अजाणन्द्र-सूरं सिरीयलमा ॥३॥ सिघं सन्तियत्थं सुकमाण-धेयं । महामझालरथं परिन्दाहिसेयं ॥३॥ पसपणज्सुणी दुम्दुही मन्दिसई । पवित्र पसत्यं च भई सुभई ।।५।। विवाहप्पियं पस्थिवं पायरीय । पयाणुतमं वक्षणं पुण्डरीयं ॥६॥ माल-सूरा गामें हिं एहि । पुणु अण्णण्णा अपहि भेएँ हिं॥७॥ उउँदउँ-उँउउँ-उमा - साईहि । तरडक - सरहक-तरडा -जहि ॥८॥ धुम्मुकु-धुम्मुकु-शुम्भुकु - ताहि । रु-रु- - अन्त - बमाले हि ॥ सकिस-तक्सि-सरे हि मणोहि । दुणिकिटि चुनिकिटि-धरिमदि - वहि ॥ गेग्ग-गेग्गदु - गेम्गदु-धाएँ हि । एमाणेय - भेय - संधाएँ हि ॥
पत्ता तं तूरहूँ सदु सुप्पिणु राहब-साहण संमिला । सरि-सोहि मावि आदि सलिलु समुह जिह मिकइ ।१२।।
[२] सण्णधु काव्य-पवर-राङ । सम्पादन भई अजयन्सहाउ ॥१॥ सण्णधु हणुउ पइरिस-चिसट्टु । रावण - णन्दणवण - मायबट्टु ॥२॥ सण्णधु गवर भाणु वि गवख्खु । जम्चुण्णउ दहिमुड दुणिरिकसु ॥३॥ खण्णा विराहिड सीहणाउ । सम्णधु कुन्दु कुमुए सहाउ || सम्णधु गोलु जलु परिमियनु । सण्णधु सुसेणु इ रणे श्रम ॥4॥ सण्णधु सीहरहु रयणकेसि । सम्पादक्षु वालि-सुर चन्दरासि ।।६।। सपणा स-सणड महिन्दसउ । मन्टु लरिषभुति पिडुमह-सहाउ ।।७।। चन्दप्पहुं बदरीथि अण्णु । लण्णन असेसु वि राम-सेण्णु ॥८।।