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इप्पच्चासमो संत्रि
पास पहुँचने लगी। उस अवसरपर हनुमानने आकाशमें मायाके गादल उत्पन्नकर, बाया कर दी । जब चफ वह दावानल शान्त हुआ तबतक हम लोग भी वहाँ पहुँचे । यहींपर कन्याओंके साथ मुझे आपके पास भेज दिया, और स्वयं सिंहकी तरह गरजकर लंकाकी ओर गया ।।१-६॥
[१२] दधिमुखके वचन सुनकर, पुलकित होकर, हनुमानके मन्त्री पृथुमतिने कहा, "सुनिये देव, सबसे पहले आकाश मार्गसे जाते हुए हनुमानने आसाली विद्या नष्ट कर दी, फिर नरवरसिंह वायुधको मार दिया। तदनन्तर युद्ध करके लंकासुन्दरीसे विवाह किया, भारी स्नेहसे विभीषणसे भेंट की और उसके साथ बात-चीत की । अविनीत मन्दोदरी और सीता देवाकी कटु बातोंके प्रसङ्गमें वह बीचमें जा खड़ा हो गया । नन्दन वन उजाड़ डाला
और अक्षयकुमारको भी मार दिया। प्रहार करते हुए इन्द्रजीतको व्याकुल कर दिया । फिर अपने आपको बंधवा दिया। राषण राजाको उपदेश दिया । विरुद्ध होने पर उसे किसी तरह मारा भर नहीं। उसका गृहशिखर नष्ट करके ये चले आये ।" यह सब चरित्र सुनकर रामने, वट-पेड़के बरोहकी तरह विशाल अपनी भुजाओंसे हनुमानका आलिङ्गन कर लिया ।।१६।।
छप्पनवीं संधि
हनुमानके आने और सूर्योदय होनेपर दशरथ-कुल उत्पन्न रामने गरजकर रावणके ऊपर अभियान किया।