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पदमचरिक
तहि अवसर हणुवन्तें चाएं वि । मामा - पालुं पाहे उप्पाएँ वि ॥७॥ सो हावाणलु पसमिट जाय। हर मि तेल्धु संपाइ ताहिँ ॥
घत्ता तहि कण्णाएँ समा-षु मई सुम्हहु पासे बिसजें वि । अप्पुणु ला समुहु गउ सीहु अम गलगनें वि ॥६॥
[२] दहिमुह-वयशु सुणे वि गोलिउ । पिहुमह हणुवहीं मम्ति पवोनिउ ॥१॥ णिसुण भवारा महयले जन्ते । पढमासाली हय इणुवन् ॥२॥ पुणु बनाउहु णरवर-केसरि । कलावि परिणिय लङ्कासुन्वरि ॥३॥ गरुव-सणेई विडु बिहीसणु । तेण समाणु करेंवि संभासणु ॥३॥ कदुधालाव • काल श्रवणीयहुँ । अन्तर थिउ मन्दोभरि-सीय ॥५॥ णन्दण-बणु मि मग्गु हउ अक्खाउ । इन्दह किड पहरन्तु विलक्खउ ॥६॥ पण वि बन्धाविड श्रप्पाणउ । किर उसमइ बसाणण-राण ॥७॥ परि बिरुद्धे कह विन घाइउ । सहाँ घर सिहरु दलेपिणु आइउ ॥८॥
पत्ता इय परियाई सुमेवि घर-दुम-पारोह-विसालहिं । अवरुण्डिर हणुवस्तु राहवेण स ई भुषालहि ॥६॥
[५६ छप्पण्णासमो सन्धि] हणुवागम विषसयरुग्गमें दसरह-वंस-जसुम्भवेण । गाज वि वहथणों उपरि दिनु पयाणउ राहवेण ।।