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पडमचरित
तहाँ सरिसाई आई अणुलागई। पत्र सहासई गहुँ भग्गई ॥१॥ किउ कामहणु पवणाणन्दै । सरपर पइसरवि गइन्हें ॥२॥ पुणु वि स - इच्छए परिसकन्ने । पाडिय पुर - पओहि णिग्गन्तें ॥३॥ सह समारणि णहयले जन्ताउ । लकह जीउ पाई उहतउ ॥४॥ सहि अवसर सुरवर - पवाणणु । बन्दहासु किर लेह दसाणणु ॥५॥ मन्तिाह वर करछाएँ धरिथउ । 'कि पहु-णिसि देव वीसरियउ ॥६॥ जह पासइ सियालु विवरायणु । तो कि तहाँ रूसइ वञ्चाणणु' १७॥ एवं भणेषि णिवारिउ आवे हि । जाणह मणे परिओसिय ता हि ॥
घत्ता
जे घर-सिहरु दलेवि हणुवन्तु पावड आहह । सीयहें राहड जेम परिभोसे अंजण माइज |18 ।।
[.] जं जै पयट्टु समुह किक्किन्धही 1 पवरासीस दिष्ण कचिन्धहाँ ॥१॥ 'होहि वस्छ जयवन्तु पिराउसु । सूर- पयाय- हारि जिह पाउसु ॥२॥ लम्की. सय- सहाणु- बिह सरवर । सिय-तरवण-अमुक्कु जिह हलहरु॥३॥ तेण वि दूरत्येण समिच्छ्यि । सिरु णामें सि आसीस पउिमिश्य ॥४॥ पुणु पुछल्ल - वीर जग केसरि । राहु आउच्छषि लडासुन्दरि ॥५॥ मिलिउ गम्पि णिय- खन्धाधारण । थिउ विमाण धण्टा • कारणे ॥६॥ तुरई हयई समुट्ठिर कलयलु । सारावह - पुरु पत्र महाबलु १७॥ णिगय अजय सहुँ पप्पं । अपण वि णिव णिय-णिय-माहप्पे HEE