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पचवण्णासमो संधि
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[६] उसीके साथ लगे हुए पाँच सौ मकान और भी ध्वस्त हो गये । पवनके आनन्द हनुमानने उन सबको ऐसे दल-मल कर दिया मानो गजेन्द्रने घुसकर सरोवरको ही रौंद डाला हो । फिर भी स्वेच्छासे घूमते हुए उसने जाते- जाते, पुरप्रतोलीको गिरा दिया। आकाशतलमें उड़ता हुआ हनुमान ऐसा सोह रहा था मानो लंकाका 'जीव' ही उड़कर जा रहा हो। उस अवसरपर, सुरवर सिंह रावण अपने हाथमें चन्द्रहास तलवार लेकर दौड़ा | परन्तु मन्त्रियोंने बड़े कष्टसे उसे रोकवाया। उन्होंने कहा, "देव ! क्या आप राजाकी मर्यादाको भूल गये । यदि शृगाल गुफाका मुख नष्ट कर दे, तो क्या उससे सिंह रूठ जाता है" । जब उसे यह कहकर रोका तो हुई शिखरको दलकर हनुमान जब लौटकर आया तो सीता ही की तरह राम आनन्द से अपने अङ्गों में फूले नहीं समाये ॥ १-६ ॥
[ ७ ] जैसे हो हनुमान किष्किंधनगरके सम्मुख आया तो वानरोंने उसे प्रवर आशीर्वाद दिया, "हे वत्स ! तुम चिरायु और जयशील बनो, पावसकी तरह सूर्यके प्रतापको हरण करो, सरोवर की तरह लक्ष्मी और शचीसे सहित बनो । बलभद्रकी तरह लक्खण ( लक्ष्मण और गुण ) तथा प्रिय ( सीता और शोभा ) से अमुक्त रहो ।” उसने भी दूरसे आदरपूर्वक उन सब आशीर्वादों को ग्रहण किया। उसके अनन्तर जगसिंह अद्वितीय वीर वह, लंका सुन्दरी से पूछकर अपने स्कन्धावारमें घंटाध्वनिसे मुखरित अपने विमानमें स्थित हो गया। तब तूर्य बज उठे और कल-कल शब्द होने लगा, जब वह महाबली सुमीवके नगरमें पहुँचा तो कुमार अन और अङ्गद अपने पिता के साथ निकले । अन्य राजे भी अपने अपने अमात्यों के साथ बाहर आये । वे सब मिलकर उसे भीतर