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पामचरित
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जई अपाम तो लन्छणु णामहौँ । जणु वोसलेसह "सकिउ रामहो" ॥१॥ मणे परिचित जय-सिरि-माणगु। हणुचहा सम्मुह पलित दसाणणु ||२|| 'अरे गोवाल वाल धी-वञ्जिय । वद्धउ झसहि काइँ अलज्जिय ॥३॥ लवणु समुहहाँ पाहुद्ध पेसहि ! सासय - पाणे सुहाई गसहि ॥४॥ मेरुह कणय - दण्ड दरिसावहि । दिणयर - मण्डल दीवउ लावहि ॥५॥ जोपहावइहें जोण्ड संपाढहि । लोह • पिण्ड सण्णाहु ममाडहि ॥६॥ इन्दहाँ देव - लोउ अष्फालाई । महु अगए' कहाउ संचालहि ॥७॥ सं णिसुणेवि पयोक्लिउ सुन्दरु । पपर- भुभङ्ग- घच- मुझ - पअरु |८|
पत्ता
'रावण तुझु ण दोसु लब दुकाउ मुणियर - भासिर । अण्णहि काहि दिछि खड दीसह सीयहें पासिउ' ॥६॥
[३] दुन्वयणहि बहवयणु पलितउ । केसरि केसरण णं वित्तड ॥१॥ 'मरु मरु लेहु लेहु सिरु पाउहाँ णं तो लहु विच्छोउँ वि धावहाँ ॥२॥ खरै वहसारही सिरु मुण्डावहाँ । वेल्लएँ बन्धवि धरै घर दावहीं ॥३॥ सं णिसुणेवि पधाइय णिसियर । असि-मस-परसु-सत्ति-पहरण कर ॥१॥ तहि अवसरे सरीरू बिहुगेप्पिणु । पवर - मुअन - बन्ध तोडेप्पिणु ॥५॥ मारह भड भास्तु समुहिउ । समि अवलोयणे णा परिहिउ ॥६॥ जउ जउ दे दिहि परिसकाइ । तड तर अहिमुहु को बि यह ॥७॥ भगइ बसाणणु 'सई संघारमि ! बेसह जाइ तं जे मरु मारमि' ॥८॥