________________
पउमचरित
पत्ता तही माझे असेसु जल थल्लु अयण-कक्खियउ । तं कवणु पएसु जं ण वि जाधे भक्खियउ ।।१०।।
[१] क्स वि फिलिदिल देह-घर खणे भडगुरम् असार ।
रावण सीयहें सुधु तु जिह भाउ चार ।। अहो अहाँ सयल-भुवण-संतावण । असुइसाणुवेक्ष सुणि रावण ।।२।। मागुस-देहु होइ घिणि-विट्टल 1 सिरेहि णिवउ हह पोहलु ॥३॥ चलु क-जन्तु मायमा कुद्ध उ । मलहों पुजु किमि-कीहुँ मूडउ ॥४॥ पुअगन्धि गहिरामिस-भण्डउ | चम्म रुक्नु दुग्गन्ध-करण्डउ ।।५।। अन्तई पोद्दल पक्खिहि भोयणु । बाहिहिं भवणु मसाणही भायणु ॥६॥ आयएहिं कलुसिड जर्जाई अङ्गाउ । कत्रणु पपसु सररहो वाउ ।।७।। सुण्णाय सुण्णाहरु व दुप्पेछउ । कलियलु पन्छाहर-सारिच्छउ ।।८।। जोरवणु गण्डहीं अणुहरमाणउ । सिरु णालियर-फरक-समापड ||६||
पत्ता एह असुइते अहाँ लयाहिप भुवण-रवि । सायहें चरि तो वि हउ विरतांभाउ ण वि ।। १०॥
[१२] पश्च-पयारे हि दहवयण जीवहाँ हुकर पाउ ।
सुहु दुःखई ज मेम ठिय तं भुजेवउ साउ ॥१॥ भो सुरकरि कर-संकास-भुन । आसव-अणुवेक्स काई ण सुभ ॥२॥ वेटिजह जाउ मोह-मएँ हि । पञ्चाणणु जेम मल-गएँ हि ॥३॥ रयणायरु जिह सरि-वाणि हि । पञ्च-विहें हिं पाणावरणिएँ हि ॥४॥ शव-ईसणेहि विहिं वेयहि । अट्ठावीसहि चामोहहिं ५॥