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२१.
चउपपणासमो संधि बीच में समस्त जल-थल दिखाई देते हैं, इसमें ऐसा कौन-सा प्रदेश है जिसका जोबने भक्षण न किया हो ।।१-१०॥
[११] इस घिनौने क्षणभंगुर और असार सीताके देह रूपी घरमें तुम उसी तरह लुब्ध हो जिस तरह कुत्ता मांसमें लुब्ध होता है ? अरे अरे सकल भुवनसंतापकारी रावण, तुम अशुचि-अनुप्रेक्षा सुनो, यह मनुष्यदेह घृणाकी गठरी है | हड्डियों और नसाँसे यह पोटली बंधी हुई है। चंचल कुजन्तुओंसे भरी, कुत्सित मांसपिंडवाली, नश्वर मलका ढेर, कृमि और कीड़ासे व्याप्त, पोपसे दुर्गन्धित, रुधिर और मांसक पात्र, रूखे चमड़ेवाली और दुर्गन्धकी समूह है। अन्तम यह पोटली, पक्षियोंका भोजन, व्याधियोंका घर और प्रमशानका पात्र बनती है । पापसे इसका एक-एक अंग कलुषित है, भला बताओ शरीरका कौन-प्रदेश अमर है। सूने घरको तरह वह सूना और अदर्शनीय है । इसका कटितल पच्छाहर' ? के समान है, यौवन ऋणके अनुरूप है,
और सिर नारियलको खोपड़ी की तरह है । अरे विश्वरवि लंकानरेश, शरीरके इतना अपवित्र होने पर भी, सीताके ऊपर तुम्हारा विरक्तिभाव नहीं हो रहा है ।।१-१०॥
[१२] हे दसमुख ! जीवको पाँच प्रकारके पाप लगते हैं। जो जिस तरह सुख-दुख में होता है, उसे वैसा भोग सहन करना पड़ता है । अरे ऐरावतकी गुंड़की तरह प्रचंडवाढु गवण, क्या तुमने आसव-अनुप्रेक्षा नहीं सुनी । यह जीव, मोह-मदसे वैसे ही घेर लिया जाता है, जैसे मत्त गज सिंहको घेर लेते हैं, या नदियोंकी धाराएँ समुद्रको घेर लेतो हैं, । पाँच प्रकारका ज्ञानावरणीय, नौ प्रकारका दर्शनावरणीय, दो प्रकारका वेदनीय, अट्ठाईस