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पउमचरित
नं हथुम-विडूसिर मुहकमलु । विहसित समवतु गाई स-गलु ।।३।। णं णीलालहित आहरण । णं कुन्द- पसाहिउ विउल-वणु ॥४॥ सुम्गाव-कन्तु पं हंस - सिरु । णं झाणु मुणिन्दहुँ तणउ पिरु ॥५॥ माया - सुग्गी मोहियड । कुसलेण पाई कामिणि-हियड ॥६।। एस्यन्तरे वद्धिप - फलपलेहि । जम्बव - कुन्देन्दणील - णलेहि ।।०॥ सोमित्ति - विराहिय- राहवेहि । सबहिं णिवत - महाहहि ॥८॥
घसा सुम्गीवहाँ बिटुर समावहिए बहु-संमाण-दाण-महि । चेविजइ तं किष्किन्धपुरु णं रवि-मण्डल व-धणेहि ।।।।
[१२] वेडेप्पिणु पट्टणु णिस्वसेसु । पवविड तूर विड-भवहीं पासु ॥ सुगावें रामें लक्खणेण । सन्वेसड पेसिउ सक्खणेण ॥२॥ 'किं बहुजा कहूँ परमथु तासु । जिम भिड जिम पाण लपविणासु' ॥३॥ तं क्यणु सुरेंवि कापचन्दु । संचालु गाई खयकाल-दग्छ ।।४।। दुभाउ माया - सुम्गीउ बेस्थु । सह-मण्डव दूउ पइस तेस्थु ।।५।। जो पेसिड समें लक्सांग । सन्देसर अक्सिउ तक्खनेण ॥६॥ 'wउ णासह अज्जु वि एउ क । कहाँ सणिय तार कहाँ सणउ रज्जु ॥७॥ पहु पाण लएप्पिणु णासु णासु । जीवन्तु ण छुट्टहि अवसु तासु ॥८॥
पत्ता
सन्देसउ बिस्सुम्गीव सुणे पुणरवि सुग्गीवहाँ तण: । सहुँ सिर-कमलेण तुहारण रज्जु लएन्वउ अपण' ॥३॥
[१३] तं वयशु सुणब अयणुठभण । आर. दुहें विर - भट्टैण ॥१॥ श्राएसु दिण्णु णिय-साइणहाँ। 'विधारहाँ मारहों आहणही ॥२॥