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बत्ता
घरु परियणु रुजु सम्पय जोवित सिय पवर । एवई अ-थिराइँ एक्कु सुपुष्पिणु धम्मु पर ॥ १० ॥ [६]
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'रावण अ-सरणु सम्भवि पवि रामहों सीय । पणं तो सम्पइ सयल सुब पईं तम्बारहों गांव ॥ ६ ॥ अहो केकसि रयणास सुय | असरण अणुत्रेव का ण सुय ॥२ जावेंहिं जीवों दुक्कड़ मरणु । ताहिं जग नाहिं को वि सरणु ॥३ क्विज जर वि भयङ्करेंहिँ । असि लडकि बित्यहि किङ्करहिं ॥ सहि । कमलाण
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माय तुरङ्गम
जम-वरुण कुबेर पुरन्दरेहिं गण-जय महारंग
पइसरह जइ रण वर्णे लिणे
वि पायालय | गिरि-गुहिले हुआ
हयले सुर-भवणं । रयणप्पहाड़
मजूस कूव
घर पाएँ । कहिन
घत्ता
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पउमचरिउ
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तर्हि असरण - पर रक्ख
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वजन ॥५
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छिपण रहि ॥ ६
उनहिं जलें ॥७
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गमण |
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दुग्गई
तो वि स्वणन्तरएँ ॥६
काले जाबो अवण ण का किधर । एक्कु अहिंसा- लक्खणु धम्मु पर ||१०१३ [ ]
रावण गम घड भड- णिवहु घरु परियणु खुहि रज्जु ।
म
एसिड बजा तुहुँ पर सुहु दुक्खु सहेज्जु || १ ||
अहीं रावण णव कुवलय-दलक्ख । किं ण सुइय एकतायुक्ख ॥ २ जगे जीवों पास्थि सहाउ को विरह वन्धइ मोह-यसेण तो वि ॥३ " घरु इड परिक्षणु इउ कलत" । गाउ वुज्झहि जिह सयलेहिं चत्त ॥ एक्के कग्य बिदुर कार्ले एक्केण वसेम्वर जल-बमाले ॥५ एक्केण वसेण्ड सहिँ णिगोएँ । एक्केण रुपग्वड पिय-बिओऍ ॥