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चउवण्णासमो संघि
गत जल-समूहकी तरह बहू, तुम्हारा नहीं होता । घर, परिजन. राज्य, सम्पदा, जीवन और प्रवर लक्ष्मी ये सब अस्थिर हैं । केवल एक धमकी छोड़कर । -१)
[६] है रावण, तुम अशरण उत्प्रेक्षाका चिंतन कर सीताको भेज दो। नहीं तो तुम्हारी संपदा और समस्त सुख नाशको प्राम हो जायेंगे | अरे कैकशी और रत्नाश्रवके पुत्र, क्या तुमने अशरण अनुप्रेक्षा नहीं सुनी । जब जीवको मृत्यु पास आ जाती है. तंत्र उसे कोई शरण नहीं मिलती चाहे तलवार और गदा हाथ में लेकर बड़े-बड़े भीषण किंकर, गज, अश्व, रथ, अम: विष्णु, महेश, चम. वरुण, कुबेर, पुरन्दर, गण, यन्न, नागराज और किन्नर भी इसकी रक्षा करें। चाहे वह पातालतल, गिरि-गुफा, आग, समुद्रजल, रणवन तृण नभतल,सुरभवन, दुर्गतिगामी रत्नाभ नरक.मजूपा कुआ या घररूपी पिंजड़े में प्रवेश करे, एक क्षणमें उसे निकाल लिया जाता है। अशरण कालमै जीवका और कोई नहीं होता है। केवल एक अहिंसामूलक धर्म (जिन) ही रक्षा करता है।।१-१०||
[७] रावण, गजघटा, भद समूह, घर-परिजन, पंडित और राज्य ये सब तुझे छोड़ देंगे। केवल एक न हो सुख-दुख सहना । ओ नवनीलकमलनयन रावण, क्या तुमने एकत्व अनुभाको नहीं सुना। मोहके वशसे कोई कितनी भी रति करे, परन्तु इस संसार, जीवका कोई भी सहायक नहीं हैं। यह घर, ये परिजन यह स्त्री, नहीं देखते, इनको सबन छोड़ दिया। विधुरकालमै अकेले क्रन्दन करोगे, वालमालामें अकेले बसोगे । निमांद में अकेले रहोगे, प्रिय वियोगमें अकेले ही रोओगे, कर्मसमूह और माइके