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पजमचरित
रावण मुहु भुञ्जन्ताह लकाउरि जिह णारि ।
आणिय साय ग ह प. णिय-कुल-वंसही मारि' ।।१|| अव मि जो दुग्गइ-गामिग हि । कुशलस - कुमन्ति कुमामिएँ हि ।।२।। परियण कुन्ति कुसेवाएँ हिँ । कुनिथ · कुथम्म • कुदेवाएँ हिं ॥३॥ आपमें असहि भावियद । सो कवष्णु ण आवइ पाश्रियर' ।।४।। नं वयणु सुणेवि कइन् ण । णिमच्छिउ बहाविद्धान ।।५।। 'किर काई इमाणण हसहि मई । अप्पणु सलाधु किट काई प ।।६।। परमाह होइ चिलिसावणउ । णाणाविह - भय - दरिपावणा ||७|| दुबहु पाहल कुल लड़छणउ । इहलोड - परत्त · त्रिणासणड IIEI दुजण - विकार - पहिच्छणउ । घर अयसही जम्महाँ लम्छणउ ||९
घत्ता संसारहो बारु दि कवाड सासय-घरहों। लह वि विणामु अकुसल अण्ण-भवन्तरहों ॥३०॥
जोठवाणु जीविउ धणिय घरु सम्पय-रिद्धि गरिन्छ ।
भावत्रि गुह णिच नुहुँ पट्टवि सीय णिसिन्द ।।१।। पर-धणु पर-नारु मनवमणु । आयरइ को त्रि जो मूढ-मणु ॥२॥ नहुँ घई सयालागम कल-कुसलु । मुणि-सुब्बय • घसण-कमल-मसलु ॥३ जाणन्तु ण अप्पहि जणय सुअ । अवधुव अणुनेम्व काइँ सुभ ||४|| को कामु सन्बु माया निमिरु । जल बिन्दु जेम जीविउ अ-धिरु ||५|| सम्पत्ति समुह - तरङ्ग - मिह । सिय चचल विजुल-लह जिह ॥६॥ जोवणु गिरि-पाइ पवाद-सरिमु । पेम्मु वि सुविणय-इंसण-सरिसु ॥३॥ धणु सुर-धणु-रिद्धि] अणुहरइ । खाणे होइ खणद्ध ओसरइ ॥८॥ झिसह सरीरु आउसु गलइ । जिह गउ जल-णिचहु ण संभवद ॥६॥