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. पउमधरिउ पुणु वि पडिझाउ भेलिउ मोग्गरु । किउ हणुवेण सो वि सय-सकरु Hen पुणु वि णिसिन्दै चाकु विप्लजिउ । बं सजाम-सऍहिं अ-पर्सजउ ॥५॥ कह बिण लग्गु पद्धिय-हरिसहाँ । दुजण-बयणु जेम सप्युरिसहो ॥६॥ जं में इन्दा पहरणु पत्तइ । तं तं गं सयवर पवसइ ।।७।। रहमुह - सुऍण णिरत्याहूए । हसिउ स-विम्भमु रामही दूर चक्रउ भइँ समाणु मोलगड । पहहि * उववासहिं भग्गउ' ॥६॥
पत्ता हणुवहीं वयहि सो इन्दइ झति पलिता । भय-भीसावणु सिहि णाई सिणिन्हें सिसड ॥१०॥
[१२] मरु मह काई एण रण णिप्फलेण सयवार-गजिएणं ।
किं लग्गूल-दाहण पवर-साहेण णह - विवजिएणं ॥१॥ णिस्विसेण किं पवर-भुभो । किमदन्तेण मत . मायले ॥२॥ कि जल-विरहिएण पहें महें। किं णासभावेण सणेहे ॥३॥ कि धुक्त-यण · मज्में दुविथई । कवणु महणु किर कु-पुरिस-सपढें ।।। जइ पहरमि तो घाए मारमि । किर तुई दुड सेण ण बियारमि' ||५|| एव भणेचि भुवणे जसवन्तहाँ । मेलिउ गाग-पासु हणुवन्तहों ।।६।। तेहएँ अघसरे तेण वि चिन्तड । 'अनमि रिउ संघारमि केनिउ ॥७॥ तो बरि घन्धावमि अपाणड । जे बोलाम रावणेश समाण ॥८॥ एम भणेवि पडिमिछड एन्तउ । णाई सहोयर साइड देन्तड ॥३॥
घत्ता रण रसियडेण कउसल्लु करेप्पिगु श्रुतें । सइ मु व-पारु वेढाविउ परणहीं पुत्ते ॥१०॥