________________
तिवण्णासमो संधि
से पानी गिर रहा था । कहीं पानीस धूलरहिीं भूसल यहां जा रहा था। कहींपर मोर शब्द कर रहे थे और कहीं पर बगुलाका वेग दिखाई दे रहा था । इस तरह उसने नई पावस लीलाका प्रदर्शन किया, स्थिर और स्थूल जलधाराएँ धरसीं। तब पवनसुतने भी, चायन्य तीर भेजा । उससे समस्त धनागम नष्ट हो गया । ध्वज सारथी और तुरंगसहित रथ मुड़ गया, परंतु एक अकेला गवणपुत्र ही मारा गया ।।१-१०॥
[..] मेघवान और अपनी सेनाके इस प्रकार नष्ट होने पर इन्द्रजीत एकदम विरुद्ध हो उठा मानो मत्त गजराजकी मदःभरी गंधसे सिंह ही क्रुद्ध हो उठा हो । उसने कहा, "हनुमान, ठहरो-लहगे, कहाँ जाते हो । अपना सिर सजाकर रथपट सजाओ। बड़े-बड़े रथ और घोड़े ही उसमें पास होंगे। महागजांका चलना ही पासोंका चलना होगा। हाथ और सिरका छेदन, प्रहार, मरण, गमन और पक्षि संघात ही उसमें फूटबूत होगे। यह युद्धपट इस प्रकार मंडित है । भाग्यसे जो इसमें जीते, सीता
और भूमि उसके लिए ही प्रदान की जाय। जिस तरह तुमन उद्यान उजाड़ा, कुमार अक्षयको मारा, से ही मुझपर प्रहार करी, प्रहार करो, मैं तुम्हाग कुलक्षय आ गया हूँ"। यह कहकर इन्द्रजीत युद्धमें हनुमानसे भिड़ गया। पवनपुत्र और रावणपुत्र इस तरह आपसमें भिड़ गये माना उत्तर और दक्षिणके दिमाज ही लड़ पड़े हो ॥१-१०॥
[११] असहनशील गवणपुत्रने पहली ही भिडन्तमें चार बाण छोड़े, परंतु उद्यानको उजाड़नेवाले हनुमानने आठ वाणांसे उन्हें लुप्त कर दिया। जब बाणासे बाग विश्वस्त हो गये तो उसने भीषण गदा घुमाकर फेंकी। चू-धू करतो वह दौड़कर हनुमानके