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पउमचरिउ
घत्ता
विलिय-पहरणु णासन्तु णिऍवि णिय - साहणु । रहवर वाहवि विड़ अग्गएँ तोयदवाहणु ॥१०॥
[ ] रावण राम-किका रण भयभरा भिडिय विप्फुरन्त।।
विडसुग्गीवाहवा विजय-लाहवा गाई 'इणु' भणन्ता ॥ ॥ वे वि पयण्ट चे वि विनाहर । वेष्णि वि अस्वय-तोण धणुधर ॥२॥ वेणि वि वियत-वच्छ पुलइय-भुभ । वेण्णि वि भजण-मन्दोयरि सुभ ॥३॥ वेषिण वि पक्षण-इसाणण-जन्दण । वेति यि दुहम - दाणव- महण ॥४॥ वेणि वि पर • वल-पहरण-पहिय ! वेणि वि जय-सिरि-बहु-अवरुण्डिय॥५॥ वेणि वि राहव-रावण- पक्खिय । चेणि वि सुरवहु-णयण कवक्सिया॥६॥ वेणि वि समर-साहि जसवन्ता । वेणि वि पहु-सम्माणु सरन्ता ॥७॥ वेणि वि परम-जिणिन्दहाँ भत्ता । वेणि वि धीर दार भय - चत्ता HIt वेणि वि अतुल महल रग दुद्धर । वेणि वि रस्स-णेस फुरियाहर ॥६॥
घत्ता विहि मि महाहवु जो असुर-सुरेन्दं हि दोसइ । रावण - रामहें सो तेहउ दुकरु होसइ ॥१०॥
अमरिस-कुद्धरण जस-लुद्धएण जयसिरि-पसाहणेणं ।
पेसिय विश हणुवहो महवाही मेहवाहणेणं ॥१॥ 'गम्पिणु णिणय-परचम दरिसहि । जिह सइ तिह उप्परि परिसहि ॥२॥ तं णिसुणेप्पिणु विम चियम्भिय ! माया - पाउस - लोलारम्भिय ॥३॥
कहि जि मेह-दुग्गयं । सुराउहं समुग्गयं ॥४॥ कहिं जि विग्जु-गज्जियं । धणेहि कं विसज्जियं ॥५॥