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विकासमो.संधि पीला, और. नेत्र मलिन थे । समूची सेना नष्ट हो रही थी । अपनी सेनाको इस प्रकार प्रहारोंसे खंडित होते देखकर, मेघवाहन सबसे आगे बढ़ा । वह बढ़िया रथपर आरूढ़ था ।१-१०|
[८] तब युद्ध में भीषण, समतमाते हुए, राम और रावणके वे दोनों अनुचर भिड़ गये। मानो विजयके लिए शीघ्रता करनेवाले मायासुमोव और राम ही 'मारो मारो' कह रहे हों। दोनों ही प्रचंड थे, दोनों ही विद्याधर थे, दोनों ही अक्षय तूणीर और धनुष धारण किये हुए थे। दोनोंके वक्षःस्थल विशाल थे और भुजाएँ पुलकित थीं । दोनों ही अंजना और मंदोदरीके पुत्र थे । दोनों ही पवनंजय और रावणके लड़के थे। दोनों ही दुर्दम दानवों का मर्दन करनेवाले थे। दोनों ही शत्रसेनापर विजयलक्ष्मी रूपी वधूको बलात् लानेवाले थे। दोनों ही क्रमशः राम और रावणके पक्षके थे। दोनोंको हा सुर-बालाएँ देख रही थीं। दोनों ही सैकड़ों युद्धोंमें यशस्वी थे। दोनों ही प्रभुके सम्मानको निबाहनेवाले थे। दोनों ही परम जिनेन्द्रके भक्त थे। दोनों ही धीर-वीर और भयसे रहित थे। दोनों ही अतुल मल्ल, रणमें दुर्धर थे। दोनों ही आरक्त नेत्र और स्फुरिताधर थे 1 देव और असुरोंमें जो महायुद्ध देखा जाता है, राम और रावणमें वह बैसा ही दुष्कर युद्ध होगा ॥१-१०|
[ ] अमर्षसे ऋद्ध, यशके लोभी जयश्रीका. प्रसाधन करनवाले मेघवाहनने हनुमानके ऊपर मेघवानी विद्या छोड़ी और कहा-"जाकर अपना पराक्रम बताओ, जैसे संभव हो वैसे उसके ऊपर बरसो।" यह सुनकर विद्या बढ़ने लगी, और मायावी मेघों को लोला उसने प्रारंभ कर दी | कहीं मेघोंसे दुर्गमता थी, कहीं इन्द्रधनुष निकल आया, कहीं बिजली तड़क रही थी, कहीं मेघों