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पउमचरिउ
त्रि तिक्ख स्वग्गुषस्य हत्था के वि गुरुहों विडिय हिंसन्त-तुर हिँ के 1 त्रि के विरहेहि के विसिदिया-जाणेंहि । के चि परिहिय आउच्छन्ति के विशिय कन्त को वि णिवारि कंण विकतुभिरिङ । 'एक्कु सु- सामि-काजु पर्छे इच्छिउ ॥ ६
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र पसन्त ||८||
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घत्ता
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जामिय-मया ॥५॥ रसन्त-मन्त-मायंहिं ॥६॥ पवर-विमार्गे हि ॥७॥
अग्गएँ इन्दह पच्छऍ रमणीयर साह | श्रीया-यन्त्रों अलग्गु णाई तारायणु ||१०| [ ५ ]
पुउि यिय-सार'ने सहाराही दिलाई ज कहि केसिय अन्यई रणहाँ सत्य रहे चढावया ॥1॥ तो पान्वरें पभाड़ सारहि । 'अत्यइँ अस्थि देव छु पहरहि ||२|| कई पञ्च सत्त दर- चावई । इस असवर अणियि गांव ॥ ३ ॥ बारह झस पष्णारह मोग्गर | सोलह लउडि-दण्ड र सुन्दर ॥५ बीम पर चडवांस तिमूल कोन्त तीस सत्तु पडिकूल ॥५॥ aण पणतीस चाल वसुन्दावावनास तिक्ख अर्द्धन्दा ॥१६॥ लई सद्वि स्वरुप्प सतरि । अष्णु विष्णय च जिय चडहतरि ॥७॥ असी तिस व सुसुण्डि । जाउ दिवें नि रण-रस- यदि ॥ सराय जं परिमाणमि । अहँ पुणु परिमाणु ण जाणमि ॥६॥
धत्ता
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बारह पियलाई सोलह विजय रहूँ वडिय । जहिँ धरिजड़ समरण इन्दु वि भिडियव ॥१०॥
[६]
लं णिसुणेवि रावणी जेथु पावणी तत्धु रहें पयट्टो | णं मज्जाय भेल्लो पुहइ-रेल्लो सातरो विसो ॥१॥