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पउमचरिड
सत्तमऍ दिवस एतरउ वुग्झु । करें लायमि साराएवि मुज्नु ॥३॥ भुआवमि तं किकिन्ध - जयरु । दक्खमि छत्त • धय-दण्ड-पवरु || अण्णु मिह कैरड हमि स । परिरक्खह जब वि कियम्त-मित्तु ।।५।। वम्भाणु भाणु गङ्गाहिसेट । अहारउ ससहरु राहु केउ ।।६।। बहु विहफइ सुकु रूणिच्छरो वि । जमु वरुणु कुवेरु परन्तरो नि !॥ पत्तिय मिलंधि रक्षन्ति जो वि । जीवन्तु ण छुष्टइ वहरि तो वि 115)
पत्ता
जइ पहज प पूरमि एत्तडिय जइ करमि समणहूँ दिहि । सत्तम दिवस सुग्गीव महु पत्तिय तो सण्णास-विहि' १६३
[१०] साराउहु पइशारूद्ध जं में। संचालु असेसु पि सिमिरु त ॥३॥ संचलु विराहिड दुणियारु । सुग्गीउ राम लक्षण-कुमार ।।२।। ने चलिय प्यारि वि परम-मित्त । णाचइ कलि-काल- कयम्त-मित्त ॥३॥ णं चलिय चारि विदिस-नाइन्द । णं चलिय धयारि वि खय-समुद्ध ।। पांवलिय चयारि वि सुर-णिकाय । गं चलिय धवल चउविह कसाय ||५|| णं लिय चयारि विश्वि-वेय । उपदाण-दण्ड णं साम - भेय ।।६।। अह वणिरण कि एत्तरेण । णं चलिय चयारि वि अप्परोण ।। श्रीवन्सतरल - तमाल-कृष्णु । जिण-धम्मु जेम साचय-रवष्णु ।।८।।
सुग्गीरामें लक्षणेंग गिरि किन्धुि विहाधियउ । पिहिमिएँ उचाऍवि सिर-कमल मउडणाई दरिसाबियउ ।।।।
[..] थोवन्तरें धण - कण-पउरू । लक्खिन तं किष्किन्धणयह ॥५।। गं गयल नारा - मण्डियउ । णं कच्चु कइय - चड्डिपड ।।२।।