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खिरु पिरिद गोलुप्पल-कोमछु । कित सरीक स हाई पोलु II एह का गम मय-मारिवहुँ । अन्तेउरई असेस भिचहुँ ।
घता तो णिसिमर-गाहे कोव-सणा हिमउ हणेवर डोइपट । रण-रस-सण्णधुभ पिएवि स मंभुव चन्दहासु अवलोइपर 111011
[५३. तिवण्णासमो संधि मण विहीसणु 'लह भजु कि कजुग णासह । राम रामहाँ अप्पियर सोप-महासह ॥
भो भुषणेकसीह अज वि विगय-णामणं अज विणिय जाणइ आज दि सिय माणहि भस विसं-सा-रएँ wor वि उबाणहि अज वितुहुँ रावणु अझ वि सम्बोधरि मन वि से सम्वण अब वि साहणु बम वि करें खान भज विभा-सायह मा विपपराइट
बीस-जीर तड थाड पह बुरी। समर राम कुणहि गम्पि 'संधी को विस जाणइ धरणिमल । कुल-खड़ माऽऽणहि मियय-वल ॥२॥ मा संसार' पइसरहि । सिविया-जाहि संचरहि ॥३॥ जग-जूरावणु सा में सिय। सा मन्योभरि पाण-पिय ॥२॥ गरवस्सन्दण हे सुरप । गहिय-पसाहशु तेजि गय ॥५॥ करि-सिरसापट संजितट। सा-जासायक रण अजज ॥३॥ बाम ग सार भोपाल।