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बासम संधि
योद्धाओं में बराबरीकी कहासुनी हो रही थी। धक्का-मुक्की हो रही थी। कहीं हलाहल हो रही थी और कहीं मारामारी हो रही थी। कहीं, तोरन्दाजी, कहीं लट्ठबाजी, कहीं घनवाजी, कहीं केशा केशी और कहीं मारकाट हो रही थी। कहीं छेदन-भेदन, कहीं लोचालोंची कहीं खींचतान, और कहीं मारचपेट हो रही थी। कहीं भेदाभेदन, कहीं दलना-पीटना, कहीं मुसळबाजी, कहीं हलबाजी, कहीं राजाओं में सेलबाजी और कहीं हाथियोंमें रेलपेल मची हुई थी। कहीं विमान गिर पड़ रहे थे, कहीं खोंगांमें मोड़ा मोड़ मची। कहीं घोड़ोंमें पड़ापड़ी हो रही थी। कहीं, विमान लोटपोट हो रहे थे, कहीं नरवरोंके प्राण आ जा रहे थे ? इस तरह जमकर दोनों मायावी सेनाएँ लड़ते-लड़ते कहीं भी जाकर नष्ट हो गई । न तो कोई उन्हें देख सका और न समझ ही सका ।। १-१०॥
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[१०] तब दुर्दम दानबका मर्दन करनेवाले हनुमान और अक्षयकुमार युद्ध में समान रूपसे लड़ने लगे । पनवपुत्रने रुष्ट होकर रजनीचरके रथको चूर-चूर कर दिया, सारथीको मार डाला, और अश्वको आहत कर दिया। उसे वैश्रवणके पथपर भेज दिया | अब अकेले हनुमान और अक्षयकुमार बचे । दोनों महाबलियोंका बाहुयुद्ध होने लगा । तदनन्तर हनुमानने झुककर अक्षयकुमारको पैरोंसे पकड़कर तब तक घुमाया जब तक कि अपने अनुचरोंके तुल्य प्राणोंने उसे मुक्त नहीं कर दिया। उसके नेत्र फूटकर उछल पड़े, दोनों हाथ टूटकर गिर गये, नीलकमलकी