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'पटमचरित
पद मि मह मिस्शुवम्तहाँ हाये । जाएषड
बज्जाडा . पन्धे ॥७॥
एम वि बइ सुम्माहि काजु ण उमहि तो परिवारउ करहि रणु । णिम्पवेवि सचाहणु माया-माहणु होमि सहेज्जी एक्कु खणु ||
हो जिम्मविउ माया-चलु भणन्सङ । मेहउलु जिह दस-दिसि-बहु भरन्तउ ॥ जलं थले गयण भुवणस्तर कमाइलो ।
अक्षर-सुआ) पहरण कर [] धाइयो | || केण पि लइड महाकुल-पावउ । केण वि हुबहु जग-संतावउ ॥२॥ केण वि उम्मूलिउ वा-पायवु 1 केण वि तामसु के वि वायषु ॥३॥ केण वि जल-धारा-हरु वारुणु । केण वि दिपायरयु अइ-दारुणु ॥१॥ केण विणाग-पासु केण वि धणु । एम पधाइड सप्लु वि साहणु ॥५॥ तो पत्ति-विन हवन्ते । चिन्तिप अहिणन चलु चिन्तन्ते ॥६॥ 'दइ पेसणु पभणन्ति पराइय । माया - साइणु करें वि पधाय ||७|| वष्णि वि वलई परापरु भिडियई । जल-थलाई गं एकहि मिलियह ॥८॥ उरिभय-धयई समाय-तूरई । णं कलि-काल-मुहाई अइ-कूरई ॥६॥
पत्ता हष्णु-अखिकुमारहुँ विष्मसार हुँ जाउ जुज्झु पहरण-धणउ । जोइना इन्हें सहुँ सुर-बिन्दे णावह छाया पेक्वणउ ॥५०॥
वेष्णि वि वलई जय-सिरि-लद्ध-पसरई । पाहरन्ति रण जीव-भयाव-सरइ ।। फुरियाहरई भई - भिउडी • करालाई । ए (के लमकहाँ पेसिय-वाण-जालई ॥३॥