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पउमरित जं भाइयण निणेवि ण सहिउ भरी ।
विम्भाविओ मणे हवन्त केसरी ॥१॥ रावण-तणयहाँ फुरणु पसंसिउ । 'वलु बढन्तरेण महु पासिर ।।२।। जसु सनारू मुरेहि ण भिउ । तेण समाणु केम हउँ जुजिकद ॥३॥ किह जसु लधु णिहउ मई आहवें । कुसल-वत्त किह पाविय राह' ॥क्षा मारुइ मर्णण वियप्पइ जाहिं । मन्दोरि - सुएण रण ता हि ॥५।। सावट्ठम्भ भदु वोलाविउ । 'किं भो पवण-पुत्त चिन्ताविउ ।।६।। णासु णासु जइ पाणहूँ भीया । इन्दइ जाम आवइ वीयर्ड' ||७|| सं णिसुणेवि पहाण-जाए। रिउ वच्छल विक्षु णाराण मा तेण पहारें णिसियरु मुन्छि । पहिवउ दुक्ख दुक्खु ओमुछिउ |
घत्ता तहि अवसर माझ्य पासु पराय अबावहाँ अपवय-विज किह । देवसणं लन्दा केवलि-सिद्धएँ परम-जिणिन्दहो रिद्धि जिह ।।१०॥
[ ] पणिय भडण 'चिन्तिउ किण्ण बुज्झहि । गुत्तर करें एण समाणु जुल्महि । . पहसिय - मुहर गर - सुर-पुज्न शिजाए।
संबोहियउ अक्रबाउ भक्खय-विजए (1) 1|१|| 'अहो मन्दोअरिणयणाणन्दण । लङ्का - गरि - णराहिव-णन्दण ॥२॥ जं पभाह में काई या इम्ममि । सिरसा बजासणि वि पदिच्छमि ॥३॥ जइ हउँ अस्वय-विज्जा रूसमि । सो णिविसद्धे सायरू सोसमि ॥१॥ इन्दो इन्दत्तणु उहालमि । मेरु वि वाम-करमों टालमि ॥५॥ णवरि एक्कु गुरु सम्वहुँ पासिङ । णउ भ-पमाणु होइ मुणि-मासिट ॥६॥