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पउमरिड
जं णिज्झाइड णिसियर-सन्दणु । मणे आटु समोरण - गन्दषु ॥२॥ वलिउ दिवायर-चकहाँ राहु व । रइ-भत्तारहाँ तिहुवण-णाहु व ॥३॥ बलिद तिविद् टु व अस्सग्गोवहाँ । राहवो ख मायासुगाकहाँ ॥।॥ दहवययो व्य बलिउ सहसखहाँ । तिह हणुवन्तु समुहुरण अक्खहाँ ॥५॥ दहमुह - पन्दणेण हवकारिउ । गि-ट्ठुर-का-आलावहिं खारिउ ।।६।। 'चाड पवन-पुत्त पई जुनिझउ । जिणधर-वरणु कयावि ग वुज्मिउ ॥७॥ अणुषउ गुणवड पर सिक्खावउ । परधण-वउ सुणामु जिह सावउ ॥८॥ पुत्तिय जीष जेण संघारिय । ण वि जाणहुँ कहि यत्ति समारिय ||
पत्ता
मई घई सुकु-लीचहाँ सही जीवहीं किय शिवित्ति मारेवाहों'। पर एक्कु परिमाहु गाहिं अवग्गडु पई समाणु पहरेवाही ॥३०॥
[५] अक्षसहो वयणु सुणेवि तणुर्वेण । पश्य-मुहण सरहसु हसिउ छणुषण ॥ 'मिह एसियतुं तु वि भिडन्तहो ।
जाविउ हरमि एत्तिज रणे रसन्सहो ॥१॥ एव चवन्त. सुहाड-चूडामणि । भिडिय परोपरु रावणि-पाणि ॥२॥ को घिणि मि आििवस विसहर । णं विपिण मि मुकछकुस कुअर ।।३।। णं विषिण मि सरहस पञ्चाणण 1 णं विणि वि कुलिसहर-दसाणण ॥४॥ णं चिणि मि गलगलिय अलहर । णे वैषिण वि उस्थनिय सापर ॥५॥ विपिण वि रावण-राइव-किकर। चिणि वि वियर-वह विहुणिय-कर ॥६॥ विष्णि वि रत्त-णेत्त इसिपाहर । त्रिणि वि बहुपरिबडिय-रण-भर ॥७॥