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'डमचरिड
वण-वलइ हणुव - पहराइयहँ । णं कालहो पाहुणाई गयई ।।८।। आहवह गं वलही हियत्तणेण । वणु भग्गु भग्गिहें कारणेण ॥६॥
धत्ता समर महासरें रुहिर-जलें गर-सिरकमलई दिसहिं पढोम वि । मारुह मत्त-गइन्दु जिह बग्गइ स ई भव-जुअल पजोएँ वि ॥३०॥
[ ५२. दुवण्णासमो संधि] विणिवाइ साहणे भग्गएँ उवणे णं हरि हरिह समावडिउ । स-तुरन स सन्दणु दहमुह-गन्दशु अक्खड इणुषहाँ अभिजित
दुरियाणा विहुणिय · वाहुबपडओ । णं गयवरउ णिम्भर-गिह गण्डओ॥ तं दहचयणु जयकारेवि अक्खयो।
पीसरिउ गरुडहाँसमुहु तक्खओ ॥१॥ संचालन्त रह-गय · वाहणें । रणे पडहर देवाविउ साहणं ॥२॥ कडिय-हय - संजोत्तिय - सन्द[ । लीलए परिउ दसाणपाणन्दणु ॥३॥ धूमकेउ धय-दपडे थवेप्पिणु । कालदिष्टि सारस्थि करेपिणु ॥४॥ परिहिंउ माया-कबउ कुमारे । रहु संचलिउ पच्छिम - दारे ॥५॥ ताव समुट्टियाई दुणिमित्तई । जाई विश्रीय-मरण-भयइत्त ॥६॥ सिव फेवात करन्ति पदुकाई । सुक्कए पायवे वुण्ड बुकह ॥५॥ पहु छिन्दन्तु सप्पु संघमा । पुशु पदिकूलु पषणु पदिपेल्लई ॥८॥ रासहु रसइ कुमारहों पच्छ । णावई सजणु लग्गु कहा ॥६॥