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एक्कवण्णासमो संधि
चिह्नसे चिह्न और सरसे सर विद्ध हो उठे। रथसे रथ, गजसे गज, अश्वसे अश्व और नस्वसे नख, टकरा गये। कोई हाथ, कोई पैरसे, कोई पिंडरी ? से, कोई जानसे, कोई दृष्टिसे, कोई मुट्ठीसे, कोई उरसे, कोई सिरसे, कोई तालसे, कोई तरलसे, कोई सालसे, कोई चन्दनसे, कोई अन्धनसे, कोई नागसे, कोई चम्पकसे, कोई नींबसे, कोई लक्षसे, कोई सर्जसे, कोई अर्जुनसे,कोई पाटलासे कोई पुम्फलीसे, कोई केतकीसे, कोई मालवीसे, हनुमान द्वारा आहत हो उठा। इस प्रकार उसने समस्त सेनाको ध्वस्त कर दिया। प्रहार करते हुए हनुमानने उच्छास रहित रिपुसेना और नन्दनवनको समान रूपसे नष्ट कर दिया ॥२-२३।।
[१५] उत्तम अश्व गिर पड़े। रथ मुड़ गये। मत्त कुञ्जर चूर-चूर हो उठे। केवल उच्छिन्न वृक्षोंकी धरती, नकटी वेश्याके समान बाकी बची थी । देवताओंको भी आनन्द प्रदान करनेवाला रावणका उद्यान और सैन्य दोनों ही धरतीपर पड़े हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे जिनप्रतिमा को प्रणाम कर रहे हों। धराशायी नन्दनवन और सैन्य, ऐसे लगते थे मानो समुद्रका जल सूख जानेपर जलचर ही निकल आये हों । उद्यान और सैन्य उसी तरह संतप्त थे जैसे कुपुत्रके कारण अन्य कुल दुःखी होते हैं । उद्यान और सैन्य आपसमें मिले हुए ऐसे जान पड़ते थे मानो उत्तम मिथुन ही दिखाई पड़ रहे हो। सामीरणी ( हनुमान और