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पणासमो शोध [१०] यह सुनकर, रानी मन्दोदरीने भी हनुमानकी चुगली करते हुए कहा, "हे देव, क्या आप किसी भी तरह यह नहीं समझ पाये । राजा महेन्द्रकी पुत्रीका पुत्र वहीं हनुमान है जिसको मांको पवनञ्जयने बारह बरसके लिए छोड़ दिया था। सास केतुमतीने भी गुप्त गर्भकी बात सुनकर और दुश्चरित्र समझकर अपने कुलगृहसे उसे निकाल दिया था । वह अपने घर (मायके) भी नहीं गई और वनमें कहीं जाकर उसको जन्म दिया | तय विद्याधरोंने इसके लिए चारों ओर खोजा किन्तु यह पहाड़की गुफामें मिला, किसी दूसरी जगह नहीं । फिर हनुरुह द्वीपमें इसका लालन-पालन हुआ, इसीसे इसका नाम हनुमान पड़ गया । आपने भी अनंगकुसुमसे उसका उसी प्रकार विवाह किया है जिस प्रकार अशोकलतासे खिले हुए सुमनका सम्बन्ध होता है। परन्तु इसने ( हनुमान ने) इन उपकारों से एकको नहीं माना । प्रत्युत वह हमारे शत्रुओका अनुचर बन बैठा है । जब यह सीता देवीके पास अंगूठी लेकर पहुँचा तो मेरे ऊपर भी गरज उठा |" एक तो उद्यानके विनाशसे दशाननकी क्रोधाम्नि प्रदीप्त हो रही थी, दूसरे मन्दोदरीने मानो यह सब कहकर उसमें सूखी घास और डाल दी॥१-१०॥
[११] यह सुनकर (प्रचण्ड) रावण ने हाथियोंसे भयङ्कर और पराक्रमी अर्क, मृगाङ्क और शक आदि, बड़े-बड़े, अनुचरों को आज्ञा दी। प्रणामपूर्वक आज्ञा लेकर और दृढ परिकरसे आबद्ध होकर, वे (निशाचर ) अपनी तैयारी करने लगे। सिंहकी तरह क्रुद्ध वे शत्रु-विजयके लालची थे । मणिमय मुकुट चमक रहे थे। और ऊँचे ऊँचे ओंठ फड़क रहे थे। उनके दोनों नेत्र भयानक थे और बाहुए पुलकित हो रही थीं । उनका भाल भ्रभंगसे कुटिल