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पउमचरित
[39] दुबई
तंगिसुमेवि घराणु मन्दोपरि पिसुणइ मिसियो ।
'किन्न कमणि देव पई बुझिट जसु तणिय जणणि चढणक्षण | बारह
क्षेत्रम
धीमा सुड महिन्दहाँ ॥ १ ॥
वरिसš परि ||२|| सुधारिदुर्गेषि ॥३॥
पण गम्मू कुलहरों विसब्जिया गय वहि मि। वणवास पसूय गम्पि कहि मि ॥४॥ विबाहर हिँ चउदिसु गविद्व । गिरि-कुहररुभम्त जवर दिइ ||५| किउ इणुरु- शेवन्तरे निवासु । हजुवन्तु पासिउ नामु तासु ॥ ६ ॥ परिणावि पहूँ वि अणकुसुम । कलि-लय च उम्भिण्ण-कुसुम ॥७॥ इय उपचार पक्कु त्रिनाउ । अष्णु वि हरिहिँ पाइकु जाउ ||८|| जं आइङ अङ्गुत्थलउ लेवि । भहु उडिउ गलगज्जिड करेषि ॥१॥ घत्ता
एक वि उबवणे दरमलिएँ दहमुह- हुवहु फसि पतित । अष्णु ি पुणु मन्वोयरिंएँ लेदि पलाल भारु णं विवउ ॥१०॥ ॥
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दुबई
तं णिसुणेवि वयणु दहववर्णे पवराणस किरा । अबक-मि-संक- वर विक्कम पहरण कर भयङ्करा ||१|| सो वर पणवेवि । आपसु मोवि ॥२॥ पाइक सान्द्र । दिद परिकरराव ॥३॥
सीह स्व संकुद्ध रिउ जय-सिरी
लुद्ध ॥४॥
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जलिय-मणि-मडड | विस्फुरिय
णिड्डूरियण पण जुल । कण्टइये भाल | उग्गिण
भू-भहुरा
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उद्घउ ॥५॥
एवर भुअ || ६ ॥
करवाल ॥७॥
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